यूएस वैज्ञानिकों ने CT स्कैन को सालाना सभी कैंसर (Cancers) मामलों में से 5% के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
उनकी नई स्टडी ने CT स्कैन के अत्यधिक उपयोग और ओवरडोज पर चिंता भी जताई है।
स्टडी ने इमेजिंग की रेडिएशन से भविष्य में फेफड़े, स्तन (Breast) व अन्य कैंसर का खतरा बताया है।
इससे शिशुओं को 10 गुना खतरा बढ़ जाता है। उसके बाद बच्चों और किशोरों का नंबर आता है।
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वयस्कों द्वारा CT स्कैन करवाने की सबसे ज़्यादा संभावना को देखते हुए उन्हें भी हानि कही गई है।
स्टडी में अकेले वर्ष 2023 में हुए 93 मिलियन स्कैन से लगभग 103,000 कैंसर होने का अनुमान है।
यह चौंकाने वाला अनुमान पिछले आकलनों से तीन से चार गुना ज़्यादा मिला है।
वैज्ञानिकों ने अमेरिका में सीटी स्कैन के बढ़ते उपयोग से भविष्य में कई कैंसरों की संभावना मानी है।
यहां तक कि उन्होंने CT स्कैन को शराब और मोटापे जैसे कैंसरकारकों जितना घातक बताया है।
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हालांकि, तकनीक की संख्या और प्रति स्कैन डोज कम करने से लोगों की जान बच भी सकती है।
बता दें कि इस तकनीक का उपयोग ट्यूमर और कई बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाता है।
वर्ष 2007 से यूएस में वार्षिक CT स्कैन जांच की संख्या में 30% की वृद्धि हुई है।
लेकिन तकनीक की आयनकारी विकिरण (Ionizing radiation) से लोगों को कैंसर हो सकता है।
रेडिएशन से जुड़ी कैंसर संख्या का अनुमान वर्ष 2023 में हुए CT स्कैन संख्या व टाइप से लगाया गया।
उम्र के साथ, 60 से 69 वर्ष की आयु वालों के स्कैन की संख्या में सर्वाधिक वृद्धि हुई थी।
50 से 59 वर्ष वालों को सर्वाधिक अनुमानित कैंसर थे। उनमें महिलाओं में 10,400 व पुरुषों में 9,300 मामले थे।
वयस्कों में सबसे आम कैंसर फेफड़े, कोलन, ल्यूकेमिया, मूत्राशय और स्तन के थे।
बच्चों में सबसे अधिक अनुमानित कैंसर थायरॉयड, फेफड़े और स्तन थे।
वयस्कों में सर्वाधिक कैंसर पेट और पेल्विस, जबकि बच्चों में सिर के CT स्कैन से होने का खतरा था।
एक वर्ष से कम उम्र में CT स्कैन करवाने वालों को कैंसर होने का जोखिम अधिक था।
स्टडी में अन्य लोगों की तुलना में उनमें कैंसर होने की संभावना 10 गुना अधिक थी।
वैज्ञानिकों ने ऊपरी श्वसन संक्रमण (Respiratory infections) या बिना गंभीर लक्षणों वाले सिरदर्द के स्कैन को बेकार बताया।
मरीज़ इनके स्कैन कम करवाकर या हल्की डोज से अपने कैंसर जोखिम को घटा सकते हैं।
नतीजों में उपरोक्त कैंसर खतरों को जानने से चिकित्सकों को विशेष मदद मिलने की उम्मीद जताई गई है।
यह स्टडी JAMA इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुई थी।
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