हाई फैट और चीनी मिला भोजन दिमागी क्षमता को प्रभावित करता हैं, ऐसा एक नई स्टडी ने कहा है।
सिडनी यूनिवर्सिटी की खोजबीन में, ज्यादा चीनी एवं चिकनाई युक्त डाइट खाने से सीखने और याददाश्त में खराबी मिली है।
वैसे चीनी और सैचुरेटेड फैट की अधिकता वाले खान-पान से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव जगजाहिर है।
ऐसे आहार के अत्यधिक सेवन से मोटापा, डायबिटीज, दिल-संबंधी रोग और कुछ कैंसर हो सकते हैं।
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साक्ष्य बताते हैं कि खराब आहार से मानसिक कार्यकुशलता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ते है।
लैब टेस्ट की मानें तो फैट और मीठे के ज्यादा सेवन से हिप्पोकैम्पस नियंत्रित सीखने और याददाश्त में कमी आती है।
हिप्पोकैम्पस दिमाग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो याददाश्त और सीखने से जुड़ा हुआ है।
नई स्टडी में रिफाइंड शुगर और सैचुरेटेड फैट युक्त आहार के अधिक सेवन का इंसानों पर असर मापा गया था।
इस परीक्षण में 18 से 38 वर्ष की आयु के 55 यूनिवर्सिटी छात्रों को भर्ती किया गया था।
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स्टडी टीम ने उन्हें एक भूलभुलैया से जुड़ी एक गेम खेलते हुए खजाना ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
भूलभुलैया में ऐसे लैंडमार्क थे जिनका उपयोग छात्र अपने रास्ते को याद रखने के लिए कर सकते थे।
एक स्थान से दूसरे स्थान तक के मार्ग को सीखने और याद रखने की क्षमता द्वारा हिप्पोकैम्पस के स्वास्थ्य का अनुमान लग सकता है।
टीम ने फैट और मीठे से बने खराब आहार को मानसिक कामों के कुछ हिस्सों पर हानिकारक प्रभाव डालते पाया।
ये प्रभाव पूरे दिमाग के बजाए रास्ता बताने और याद रखने वाले हिप्पोकैम्पस क्षेत्र पर अधिक थे।
आहार में फैट और चीनी कम खाने वाले छात्र, ज्यादा खाने वालों की तुलना में, अधिक सटीकता से स्थान बताने में सक्षम थे।
नतीजों ने स्वस्थ मानसिक कामों को बनाए रखने के लिए अच्छे आहार के महत्व को उजागर किया।
टीम ने कहा कि खराब खाने की आदतें मध्यम आयु और बुढ़ापे में उम्र संबंधित मानसिक गिरावट की शुरुआत तेज करती हैं।
इसलिए आहार में बदलाव लाकर बढ़ती उम्र में दिमागी कामकाज और स्वास्थ्य को बरकरार रखा जा सकता है।
यह स्टडी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओबेसिटी में प्रकाशित हुई थी।