अमेरिका के साइंस और इंजीनिरिंग एक्सपर्ट्स ने ऐसे स्मार्ट नेकलेस (Smart necklace) का सफल परीक्षण किया है जो किसी मनुष्य के स्वास्थ्य में हो रहे परिवर्तन को पसीने (Sweat) से ही भांप लेता है।
साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित इस चमत्कारी अविष्कार की सूचना ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की एक टीम ने दी है।
टीम ने ही बिना बैटरी वाले इस वायरलेस, बायोकेमिकल सेंसर युक्त डिवाइस का निर्माण और टेस्ट किया है।
स्मार्ट नेकलेस जैसा यह डिवाइस, एक्सरसाइज करते इंसान के पसीने की जांच से उसके ब्लड शुगर का पता लगाता है।
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एक बार गले में पहने जाने के बाद यह यूजर के ग्लूकोज लेवल की निगरानी करना शुरू कर देता है।
बैटरी के बजाय यह एक रेजोनेंस सर्किट (Resonance circuit) से चलता है जो बाहरी रीडर सिस्टम द्वारा भेजे गए रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल को दिखाता है।
फोन और लैपटॉप में पाए जाने वाले भारी और कठोर कंप्यूटर चिप्स के बजाय, इस डिवाइस के सेंसर बहुत पतली सामग्री से बने है।
इससे डिवाइस को अत्यधिक लचीला बनने और त्वचा के संपर्क में आने पर इसकी कार्यक्षमता को सुरक्षित रखने में आसानी रहती है।
टेस्ट के दौरान, 30 मिनट की इनडोर साइकिलिंग करने वालों ने जब मीठा ड्रिंक पिया तो डिवाइस ने उनके पसीने में ग्लूकोज का लेवल बढ़ा हुआ बताया।
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इससे पता चला कि डिवाइस सेंसर ने ग्लूकोज लेवल को सफलतापूर्वक ट्रैक किया और यह पसीने में मिले अन्य महत्वपूर्ण केमिकल भी बता सकता है।
टीम के अनुसार, हमारे पसीने, आंसू, लार और मूत्र में सैकड़ों ऐसे केमिकल होते है जो स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकते है।
इनसे बीमारी, संक्रमण और यहां तक कि मानसिक आघात के सबूत भी मिल सकते है।
हालांकि, वर्तमान डिवाइस केवल पसीने का विश्लेषण करने में ही समर्थ है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि भविष्य के सेंसर मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर और हार्मोन का भी पता लगा सकेंगे।
ऐसे में बिना ऑपरेशन या एमआरआई स्कैन आदि के ही मस्तिष्क की चोट, विकार और इसकी जटिल कार्यप्रणाली को समझना भी आसान होगा।
नए डिवाइस को सरल सर्किट के साथ एक हल्के उपकरण के रूप में बनाया जा रहा है, जिसे आसानी से दैनिक जीवन में इस्तेमाल किया जा सकता है।
फ़िलहाल, ऐसे डिवाइस आम पब्लिक के लिए उपलब्ध होने में कुछ समय लगेगा।
उन्होंने उम्मीद जताई है कि आने वाले समय में स्वास्थ्य स्थितियों का आकलन करने वाले सेंसरों को हार, झुमके या अंगूठियों के रूप में ढ़ाला जा सकेगा।
इससे डॉक्टरों के लिए इंसानों के स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से ट्रैक करना आसान होगा।