दुनिया भर में बीमारियों की रोकथाम के लिए दी जाने वाली एंटीबायोटिक (Antibiotics) दवाओं का दमखम अब पहले जैसा प्रभावी नहीं रहा।
इसका कारण है, रोगजनक बैक्टीरिया का हर मौसम में और ज्यादा ताकतवर बनते जाना।
इस समस्या से निपटने के लिए तेल अवीव यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक दल ने एक नई तकनीक ईजाद की है, जिसकी मदद से बिना दवाओं के ही ‘अच्छे’ बैक्टीरिया शरीर में मौजूद ‘खराब’ बैक्टीरिया को खत्म कर सकते है।
इस नई तकनीक से विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं को लक्षित करना संभव है।
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ऐसे में, माना जा रहा है कि एंटीबायोटिक दवाओं की घटती प्रभावकारिता को देखते हुए मेडिकल जगत नई तकनीक को विकल्प के रूप में उपयोग कर सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बैक्टीरिया प्रतिरोध को सार्वजनिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण खतरों में से एक के रूप में परिभाषित किया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, लाभकारी और रोगजनक बैक्टीरिया हमेशा से ही संसाधनों और पोषक तत्वों पर कब्जे के लिए एक-दूसरे से लड़ते रहे है।
इस लड़ाई में उन्होंने विभिन्न प्रकार के उन्नत और जटिल तरीके विकसित किए है, जो उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा को बेअसर कर सकते है। ऐसे ही कुछ तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाली बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
अपनी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने एक रोगजनक विषाणु से निकाला जहरीला इंजेक्शन सिस्टम तैयार किया है।
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यह जहर एक लाभकारी जीवाणु द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा। यह लाभकारी जीवाणु मनुष्यों या जानवरों के लिए हानिकारक नहीं है और विभिन्न परिस्थितियों में जीवित रहने और प्रजनन करने में सक्षम है।
इंजेक्शन सिस्टम एक जीवाणु द्वारा उसके पड़ोसी बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए जहरीला तीर मारने के समान है।
एक प्रोटीन की मदद से वैज्ञानिक इस तीर को जब चाहे चला और रोक सकते है।
इसके अलावा, बीमारी करने वाले रोगाणुओं को दिए जाने वाले विषाक्त पदार्थों के प्रकार और मात्रा को नियंत्रित करना भी संभव बताया गया है। इसी प्रकार, सिस्टम की मारक क्षमता को भी कम या ज्यादा किया जा सकता है।
इस नई तकनीक को मनुष्यों, जीव-जंतुओं, पौधों और पर्यावरण में उपस्थित रोगजनक बैक्टीरिया के इलाज में इस्तेमाल करने की योजना है।
रिसर्च संबंधी विवरण को ईएमबीओ रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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