Blue light side-effects: यक़ीनन आप ये जानकर डर जाएंगे कि जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स (electronic gadgets) हमें जल्दी बूढ़ा बना सकते है।
एक नई स्टडी के मुताबिक़, इन गैजेट्स से निकलने वाली अत्यधिक नीली रोशनी (Excessive blue light) उम्र बढ़ने की प्रक्रिया (Aging) तेज कर सकती है।
पहले भी रोज़ाना बहुत देर तक टीवी, लैपटॉप और फोन की स्क्रीन का इस्तेमाल मोटापे और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से संबंधित मिला है।
लेकिन अब ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने देर तक गैजेट्स की नीली रोशनी के संपर्क में रहने से हमारे शरीर की कोशिकाओं (Cells) से लेकर मस्तिष्क के न्यूरॉन्स (Neurons) तक को ज़बरदस्त नुकसान की आशंका जताई है।
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फल वाली मक्खियों (Fruit flies) पर की गई उनकी इस रिसर्च के नतीजे हाल ही में फ्रंटियर्स इन एजिंग में प्रकाशित हुए है।
ये नतीजे बताते है कि सेल्स के सही ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक विशिष्ट केमिकल्स स्तर (Chemicals level) नीली रोशनी के संपर्क में आई मक्खियों में बदलने लगते है।
ऐसा नीली रोशनी द्वारा नर्वस और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाले एक केमिकल की अधिकता और मस्तिष्क की बेहतरी के लिए ज़रूरी ग्लूटामेट का स्तर कम करने से संभव पाया गया है।
रिसर्चर्स के अनुसार, प्रत्येक कोशिका के कार्य और विकास के लिए ईंधन देने वाला सक्सेनेट (Succinate) केमिकल आवश्यक है। नीली रोशनी में आने के बाद सक्सेनेट का स्तर बढ़ने लगता है, लेकिन कोशिकाओं को पर्याप्त ईंधन नहीं मिल पाता।
इसी तरह, नीले प्रकाश से न्यूरॉन के बीच संचार के लिए आवश्यक ग्लूटामेट एसिड का स्तर गिरने लगता है।
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इन परिवर्तनों से सेल्स पर अपर्याप्त क्षमता से काम करने के कारण दबाव पड़ने लगता है, जिससे उनकी असमय मृत्यु हो सकती है। इस स्थिति में शरीर कमज़ोर और जल्दी बूढ़ा होने लगता है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारे डिवाइस की नीली रोशनी उम्र बढ़ने को तेज करती है।
रिसर्चर्स की मानें तो वर्तमान समय में एलईडी की रोशनी फोन, डेस्कटॉप और टीवी डिस्प्ले सहित घरों एवं ऑफिसों में भी प्रकाश का मुख्य स्त्रोत बन चुके है।
इसलिए इंसान अधिकांश समय एलईडी लाइटिंग के माध्यम से नीली रोशनी के संपर्क में ही रहता है।
क्योंकि मक्खियों और इंसानों की कोशिकाओं में सिग्नलिंग केमिकल्स की संख्या समान है, इसलिए इंसानों पर भी नीली रोशनी के नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
हालांकि, रिसर्च में मक्खियों पर काफी ज़बर्दस्त नीली रोशनी का इस्तेमाल किया गया था। उनके विपरीत, इंसान कम तीव्र प्रकाश के संपर्क में रहते हैं, इसलिए उनकी सेलुलर क्षति धीमी हो सकती है।
रिसर्चर्स की सलाह में अत्यधिक नीली रोशनी के संपर्क से बचना एक अच्छी एंटी-एजिंग रणनीति हो सकती है।
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