एक नए अध्ययन में पाया गया है कि विटामिन डी (Vitamin D) का स्तर बढ़ाने से भी COVID-19 की गंभीरता को रोका नहीं जा सकता।
महामारी के शुरुआती अध्ययनों का सुझाव था कि विटामिन डी सप्लीमेंट्स कोरोनावायरस के खिलाफ एक सुरक्षात्मक उपाय है। लेकिन मैकगिल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को एक नए अध्ययन में इस दावे के कोई आनुवंशिक प्रमाण नहीं मिलें।
विटामिन डी के स्तर और COVID-19 की गंभीरता के बीच संबंधों का आकलन करने के लिए, उन्होंने महामारी विज्ञान तकनीक पर आधारित एक अध्ययन किया।
इसमें बढ़े हुए विटामिन डी के स्तर के साथ आनुवंशिक वेरिएंट्स (Genetic Variants) को जोड़ा गया।
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वैज्ञानिकों ने कोरोना ग्रस्त 14,134 मरीजों और 11 देशों के दस लाख से अधिक बिना कोरोना बीमारी वाले व्यक्तियों के आनुवंशिक वेरिएंट्स की जांच की।
पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि बीमारी से पीड़ित मरीजों के विटामिन डी का स्तर और उनके अस्पताल में भर्ती होने या गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संभावना के बीच कोई संबंध नहीं था।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अधिकांश विटामिन डी अध्ययनों की व्याख्या करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वे गंभीर COVID-19 के लिए ज्ञात जोखिमों जैसे वृद्धावस्था या पुरानी बीमारियों के लिए सही साबित नहीं होते। ऐसी अवस्थाएं भी कम विटामिन डी होने की ओर इशारा करती है।
इसलिए विटामिन डी के स्पष्ट प्रभाव परीक्षणों से ही बता पाना संभव होगा। हालांकि, ये प्रक्रिया जटिल, महंगी और ज्यादा संसाधनों वाली होती है। एक महामारी के दौरान इन सब में लंबा समय लगता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो अध्ययन के परिणाम बताते है वो यह है कि COVID-19 के लिए अन्य चिकित्सीय या रोकथाम के तरीकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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