माइग्रेन (Migraine) दर्द के पीड़ितों को भोजन में बदलाव करने से कुछ राहत मिल सकती है, यह कहना है अमेरिकी वैज्ञानिकों का।
एक नए अध्ययन में उन्होंने वनस्पति तेल (Vegetable Oil) और घी से बने भोजन के मुकाबले मछली या मछली के तेल में मिलने वाले ओमेगा- 3 फैटी एसिड (Omega-3 Fatty Acids) को ज्यादा लेने वालों में माइग्रेन दर्द की तीव्रता और लगातार होने को कम होते देखा।
उन्होंने माइग्रेन दर्द से पीड़ित 182 इंसानों को तीन महीने तक अलग-अलग डाइट पर रखा। उनकी डाइट में मछली, सब्जियां, सलाद और नाश्ते में खाए जाने वाले फूड प्रोडक्ट्स थे।
एक ग्रुप के लोगों को खाने में ज्यादा तैलीय मछली और वनस्पति तेल में मिलने वाला लिनोलिक एसिड (Linoleic Acid) कम मात्रा में दिया गया। दूसरे ग्रुप वालों को ज्यादा मात्रा में मछली और लिनोलिक एसिड मिला जबकि तीसरे ग्रुप को ज्यादा लिनोलिक एसिड और कम मछली खाने को मिली।
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इस दौरान सभी मरीजों के दर्द, अवधि, तीव्रता और दवा लेने का उनके जीवन पर हुआ प्रभाव जाना गया। अध्ययन की समाप्ति पर सभी के खून की जांच की गई और उनके माइग्रेन दर्द के बारे में भी पूछा गया।
अन्य मरीजों के मुकाबले ज्यादा मछली और कम लिनोलिक एसिड वाले ग्रुप ने दर्द की तीव्रता और अधिकता में 30 से लेकर 40 प्रतिशत तक कमी बताई।
आपको बता दें कि वनस्पति तेल में मिलने वाला लिनोलिक एसिड एक पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड है, जो आमतौर पर मकई, सोयाबीन और कुछ बीजों से निकले तेल में मिलता है। कई अध्ययनों ने बीमारियों को बढ़ाने में इसकी अहम भूमिका बताई है।
जानकारों के अनुसार, 18 से 44 वर्ष की महिलाओं को माइग्रेन ज्यादा होता है। अब तो इस समस्या को ठीक करने वाली दवाओं से भी बहुत कम राहत मिलती है। उल्टा, दवाओं पर ज्यादा निर्भरता से शरीर पर दुष्प्रभाव होने की आशंका बनी रहती है।
ऐसे में, केवल वनस्पति तेल को हटाकर और मछली के ज्यादा इस्तेमाल से माइग्रेन ठीक करने वाली दवाओं की जरूरत भी कम हो सकती है, यह कहना है वैज्ञानिकों का।
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हालांकि, उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मछली में मिलने वाले ओमेगा-3 फैट का सप्लीमेंट नहीं लेना चाहिए, बल्कि भोजन में मछली ही खानी चाहिए।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन के बारे में बीएमजे पत्रिका में भी छापा गया।
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