Chewing gum reduces preterm births: गर्भावस्था (Pregnancy) से पहले या प्रारंभिक गर्भावस्था में रोजाना xylitol च्युइंग गम चबाने से समय पूर्व प्रसव की संख्या में काफी कमी आती है।
यह दावा किया है एक विशाल अध्ययन ने, जिसे हाल ही में वाशिंगटन, डीसी स्थित सोसाइटी फॉर मैटरनल-फेटल मेडिसिन की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया गया है।
दरअसल, पिछले दशकों में हुए कई अध्ययनों ने खराब मौखिक स्वास्थ्य (Poor oral health) और समय से पहले जन्म (Preterm birth) की बढ़ती घटनाओं के बीच एक संबंध पेश किया है।
इसे समझते हुए शोधकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं के समय से पहले प्रसव को रोकने के लिए गर्भावस्था के दौरान दंत स्वास्थ्य में सुधार के विभिन्न तरीकों पर ध्यान भी दिया है।
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लेकिन अब ह्यूस्टन स्थित एक मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने मौखिक स्वास्थ्य में सुधार और समय पूर्व प्रसव कम करने का एक आसान और सस्ता तरीका खोज निकाला है।
10 वर्षों तक चलने वाले इस अध्ययन को दक्षिण-मध्य अफ्रीकी देश मलावी के आठ स्वास्थ्य केंद्रों पर अंजाम दिए गया था। अध्ययन में 10 हजार से ज्यादा गर्भवती महिलाएं शामिल थी।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मलावी में दुनिया के किसी अन्य देश की अपेक्षा समय पूर्व प्रसव दर सबसे अधिक पाई गई है।
वहां के आठों स्वास्थ्य केंद्रों ने गर्भावस्था से गुजरी रही महिलाओं को मौखिक स्वास्थ्य देखभाल और समय से पहले जन्म की रोकथाम को बढ़ावा देने वाली स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं प्रदान की। जबकि आठ केंद्रों में से आधे ने प्रतिभागियों को xylitol च्यूइंग गम भी चबाने को दिए।
उन्हें गर्भावस्था के दौरान दिन में दो बार 10 मिनट के लिए ये च्यूइंग गम चबाने का निर्देश दिया गया था।
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Xylitol फलों और सब्जियों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक अल्कोहल है। आमतौर पर इसका उपयोग च्युइंग गम में चीनी के विकल्प के तौर पर किया जाता है।
छह वर्षों के फॉलो-अप के दौरान संपर्क की गई 9,670 महिलाओं में से xylitol च्यूइंग गम चबाने वालियों के समय पूर्व प्रसव में उल्लेखनीय कमी दिखाई दी।
यह कमी च्युइंग इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के 13 प्रतिशत बनाम न इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के 17 प्रतिशत की थी।
इसके अलावा, च्युइंग का उपयोग करने वाली महिलाओं के बच्चों का वजन और उनका स्वयं का मौखिक स्वास्थ्य भी सुधारा हुआ पाया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल अनुमानित डेढ़ करोड़ बच्चे समय से पहले (गर्भावस्था के 37 वें सप्ताह से पहले) पैदा होते है और यह संख्या बढ़ रही है। ऐसे बच्चों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना अधिक करना पड़ता है।
यह अध्ययन अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
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