Global Air Pollution: एक नई स्टडी ने दुनिया भर में हानिकारक वायु प्रदूषक PM2.5 की दैनिक बढ़त को लेकर चिंता ज़ाहिर की है।
यह बढ़त विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय दैनिक सुरक्षित स्तर से कहीं अधिक जानी गई है।
स्टडी में दुनिया का केवल 0.18% भूमि क्षेत्र और आबादी का 0.001% हिस्सा ही PM2.5 के सुरक्षित स्तर में पाया गया है।
हालांकि, पिछले दो दशकों से 2019 तक यूरोप और उत्तरी अमेरिका में PM2.5 का दैनिक स्तर मामूली रूप से कम जाना गया है।
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लेकिन दक्षिणी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों के प्रदूषण स्तर में वृद्धि मिली है।
बता दें कि PM2.5 बढ़ने से वायु की गुणवत्ता, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
PM2.5 के महीन कण आसानी से साँस द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते है। इनसे गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा होती हैं।
वैश्विक स्तर पर PM2.5 स्थिति का अधिक सटीक आकलन कई विशिष्ट तरीक़ों द्वारा किया गया है।
इनमें पारंपरिक वायु गुणवत्ता निगरानी विधियां, उपग्रह-आधारित मौसम विज्ञान, वायु प्रदूषण डिटेक्टरों, वैज्ञानिक जोड़-घटाव और मशीनों का उपयोग शामिल है।
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स्टडी में, विश्व स्तर पर वर्ष 2000 से 2019 तक वार्षिक औसत PM2.5 स्तर 32.8 µg/m3 तक बढ़ा हुआ पाया गया।
वर्ष 2019 तक 70% से अधिक दिनों में PM2.5 सघनता 15 μg/m³ से अधिक पाई गई। यह वृद्धि दक्षिणी और पूर्वी एशिया में तो 90% से अधिक दिनों तक रही।
आकलन में, पूर्वी एशिया और दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों में उच्चतम PM2.5 सघनता क्रमश 50.0 µg/m3 और 37.2 µg/m3 दर्ज की गई। इसके बाद उत्तरी अफ्रीका (30.1 µg/m3) का स्थान रहा।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड (8.5 μg/m³), ओशिनिया के अन्य क्षेत्रों (12.6 μg/m³), और दक्षिणी अमेरिका (15.6 μg/m³) में सबसे कम वार्षिक PM2.5 सघनता थी।
पूर्वोत्तर चीन और उत्तर भारत में हानिकारक PM2.5 सघनता सर्दियों के महीनों (दिसंबर, जनवरी और फरवरी) के दौरान अधिक थी।
जबकि उत्तरी अमेरिका के पूर्वी क्षेत्रों में गर्मी के महीनों (जून, जुलाई और अगस्त) में अधिक थी।
दक्षिण अमेरिका में अगस्त और सितंबर में तथा उप-सहारा अफ्रीका में जून से सितंबर तक अपेक्षाकृत उच्च PM2.5 वायु प्रदूषण दर्ज की गई।
उपरोक्त जानकारी से वायु प्रदूषण के अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों का बेहतर आकलन करके वायु प्रदूषण रोकथाम नीतियां विकसित हो सकती है।
चीन और ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्टों की यह साझा स्टडी जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित की गई थी।
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