एक ऑस्ट्रेलियाई स्टडी ने पश्चिमी शैली के आहार (Western-style diet) से ज़्यादा डिप्रेशन (Depression) बढ़ने की संभावना जताई है।
मैक्वेरी यूनिवर्सिटी के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की स्टडी में, ज़्यादा मांस, मीठे, और मैदे से बनी चीज़ें खाने से शरीर में क्यूरेनिक एसिड (Kynurenic acid) कम होते पाया गया है।
वैज्ञानिक टीम के अनुसार, हमारे शरीर में बनने वाला यह एसिड डिप्रेशन से बचाने में मददगार हो सकता है।
17 से 35 वर्षीय 169 वयस्कों के टेस्ट से जाना गया कि ताजे फल और सब्जियों की अपेक्षा बर्गर, पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक, फ्राइज जैसी वेस्टर्न डाइट खाने से डिप्रेशन अधिक हो सकता है।
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स्टडी से ऐसी डाइट खाने वालों के पेशाब की जांच में क्यूरेनिक एसिड का निम्न स्तर और डिप्रेशन के अधिक गंभीर लक्षण मिलने की ख़बर है।
बता दें कि क्यूरेनिक एसिड के निर्माण में अमीनो एसिड ट्रिप्टोफैन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह अमीनो एसिड हमारे मूड, नींद, व्यवहार, मस्तिष्क की रक्षा और रोगजनक सूजन को नियंत्रित करने का काम करता है।
ओट्स, केला, दूध, मछली, पनीर, चिकन, मूंगफली और चॉकलेट इस अमीनो एसिड के प्रमुख स्त्रोत है।
टीम की राय में, ट्रिप्टोफैन से बने क्यूरेनिक एसिड का कम स्तर डिप्रेशन से जुड़ा हो सकता है। लेकिन इसकी बहुत अधिक मात्रा सिज़ोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी भी पैदा कर सकती है।
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देखा गया है कि नियमित एक्सरसाइज करने वालों में क्यूरेनिक एसिड का स्तर अच्छा होता है। इसलिए उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है।
हालांकि, यह कहना जल्दबाजी होगा कि एंटीडिपेंटेंट्स दवाओं की तरह डिप्रेशन के इलाज में क्यूरेनिक एसिड दिया जा सकता है।
फ़िलहाल, सटीक जानकारी के लिए इस दिशा में और अधिक खोज की आवश्यकता कही गई है।
लेकिन इतना तय रहा कि अधिक मात्रा में वेस्टर्न स्टाइल भोजन खाने से डिप्रेशन की मात्रा बढ़ती है और क्यूरेनिक एसिड में कमी इस समस्या से संबंधित हो सकती है।
इस बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी फ्रंटियर्स इन न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट से मिल सकती है।
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