Bedtime media use: अक्सर हमें सोने (Sleep) से पहले स्मार्टफोन के इंटरनेट पर फिल्में, संगीत, वीडियो, सोशल मीडिया आदि देखने के लिए मना किया जाता है ताकि नींद खराब न हो।
लेकिन एक नई अमेरिकी स्टडी ने इस धारणा में थोड़ा बदलाव किया है।
डेलावेयर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, बेडटाइम स्क्रीन का उपयोग हमारे लिए उतना बुरा नहीं है, जितना पहले सोचा गया था। हालाँकि, जरूरत है तो देखने या सर्फिंग की समय-सीमा कम करने की।
इस बारे में और खुलासा करते हुए एक्सपर्ट्स का कहना था कि यदि सोने से पहले टीवी, वीडियो देखना या संगीत सुनना है तो इसका समय छोटा कीजिए। इससे आपको उस रात अपनी नींद में किसी भी नकारात्मक असर का अनुभव होने की संभावना नहीं होगी।
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इससे जुड़े सबूत उन्हें 58 वयस्कों पर किए गए एक टेस्ट से प्राप्त हुए।
उन सभी ने एक डायरी में सोने से पहले मीडिया देखने में बिताए समय की जानकारी दर्ज की।
विशेषज्ञों ने इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी (Electroencephalography- EEG) टेस्ट से उनकी नींद का समय, कुल नींद और गुणवत्ता की जानकारी हासिल की।
बता दें कि एक ईईजी टेस्ट खोपड़ी से जुड़ी छोटी धातु डिस्क का उपयोग करके मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि (Electrical activity) का पता लगाता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सोने से ठीक एक घंटे पहले तक मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की नींद पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और उन्हें अच्छी नींद आई।
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यदि बिस्तर पर लेटने से पहले उन्होंने मल्टीटास्किंग यानी लैपटॉप पर काम, स्मार्ट फोन पर फ़िल्में, गाने, सोशल मीडिया आदि नहीं देखे थे और लेटते हुए ही स्मार्टफोन देखा तो इससे भी उनकी नींद की मात्रा कम नहीं हुई।
लेकिन, जो लोग एक घंटे से अधिक समय तक मीडिया का उपयोग करते रहे, उनकी रात में नींद और सोने की अवधि कम हुई।
सोने से पहले मीडिया के उपयोग से नींद की गुणवत्ता अप्रभावित रही।
इस बारे में ज्यादा जानकारी जर्नल ऑफ स्लीप रिसर्च से मिल सकती है।
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