Traffic-related air pollution: अगर आप भी रोज़ाना घंटों ट्रैफिक जाम में फंसते है तो ज़रा सावधान हो जाइए।
न्यूरोलॉजी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, लंबे समय तक ट्रैफिक संबंधित वायु प्रदूषण में सांस लेने से डिमेंशिया (Dementia) का ख़तरा हो सकता है।
डिमेंशिया सोचने, याद रखने, सीखने और व्यवहार आदि से संबंधी दिमाग की क्षमता का निरंतर कम होना है।
स्टडी करने वालों के मुताबिक़, इस दिमागी विकार के पीछे दूषित हवा में मौजूद पीएम2.5 के अति सूक्ष्म प्रदूषक कणों की अधिकता संभव है।
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यह चिंताजनक जानकारी प्रदूषण और डिमेंशिया के ख़तरे से संबंधित 17 स्टडीज़ की छानबीन से प्राप्त हुई है।
स्टडीज़ में अधिकतर 40 वर्ष से ऊपर के नौ करोड़ से अधिक लोग शामिल थे। समय बीतते उनमें से 55 लाख लोगों में डिमेंशिया विकसित हुआ।
पाया गया कि ट्रैफिक की दूषित हवा में मिले पीएम2.5 प्रदूषक कण ज़्यादा झेलने वालों को उपरोक्त दिमागी विकार का ख़तरा उच्च स्तर का था।
अध्ययनकर्ताओं ने महीन प्रदूषक कणों में हर एक माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) की वृद्धि से डिमेंशिया का जोखिम 3% तक बढ़ा हुआ पाया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने बताया कि दुनिया की 90% से अधिक आबादी वायु प्रदूषण के सुरक्षित स्तर से अधिक में रह रही है।
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दुनिया भर में उम्र बढ़ने के साथ ही डिमेंशिया जैसी परेशानियां भी अधिक होती जा रही है। इसलिए रोकथाम का पता लगाना और बचना ही इस बीमारी की वृद्धि को थाम सकता है।
बचाव के लिए ट्रैफिक प्रदूषण से दूर रहने सहित कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहना और पेट्रोल-डीजल की जगह ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों का उपयोग लाभकारी बताया गया है।
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