प्रकृति में समय बिताने से तनावपूर्ण भावनाओं को दूर किया जा सकता है। साथ ही इससे दिमाग पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पर्सनैलिटी एंड इंडिविजुअल डिफरेंसेज (Personality and Individual Differences) जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, प्रकृति की मानसिक सेहत में सुधार करने की इस शक्ति को कोरोना महामारी भी कम नहीं कर सकी।
प्रकृति पर लोगों के विचारों को जानने और महामारी ने उनके जीवन तथा वर्तमान मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को कितना प्रभावित किया, इसके लिए वैज्ञानिकों ने अमेरिका और जापान में एक सर्वेक्षण किया।
सर्वे से यह पता लगाने की कोशिश की गई कि प्रतिभागी प्रकृति से जुड़ाव महसूस करते है या स्वामित्व।
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शोधकर्ताओं ने पाया कि सर्वे में भाग वालों ने महामारी के दौरान तनाव के स्तर में अधिक वृद्धि तो बताई लेकिन प्रकृति से जुड़े लोगों ने इसका बेहतर तरीके से मुकाबला किया, फिर चाहे वो जापान में रहते थे या संयुक्त राज्य अमेरिका में।
लेकिन मनुष्य को प्रकृति का स्वामी मानने वाले कुछ अमेरिकी महामारी का अच्छी तरह से सामना नहीं कर पाए। जबकि खुद को प्रकृति का हिस्सा मानने वाले और पेड़ों से घिरे रहना पसंद करने वाले जापान में ऐसा नहीं था।
शोधकर्ताओं का कहना था कि टेक्नोलॉजी के दम पर तेजी से चलती दुनिया में थोड़े समय के लिए प्रकृति में रहने से स्पष्ट लाभ होता है।
अपने मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक पल को जूम से दूर होने की सोचिए, टहलने जाइए और पक्षियों का चहकना सुनिए – यकीनन फायदा होगा।
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