नींद से जुड़ी समस्याएं (Sleep problems) आंखों को नुकसान सहित अंधेपन (Blindness) का ख़तरा बढ़ा सकती है, ऐसा इंटरनेशनल मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है।
बीएमजे ओपन में प्रकाशित चीन, स्वीडन और आइसलैंड के एक्सपर्ट्स की स्टडी ने बहुत अधिक या बहुत कम नींद, अनिद्रा, दिन में सोने और खर्राटे लेने को ग्लूकोमा (Glaucoma) के विकास से संबंधित बताया है।
ग्लूकोमा यानी काला मोतिया आंख के विकारों का एक समूह है। इस समस्या में आंख से मस्तिष्क तक जानकारी पहुंचाने वाली ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त (Optic nerve damage) हो जाती है।
बता दें कि ग्लूकोमा अंधेपन का एक प्रमुख कारण है और साल 2040 तक दुनिया भर में इससे अनुमानित 11 करोड़ 20 लाख इंसानों के प्रभावित होने की आशंका है।
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एक्सपर्ट्स के अनुसार, इलाज न होने की स्थिति में ग्लूकोमा अपरिवर्तनीय अंधेपन (Irreversible blindness) में बदल सकता है।
स्टडी के लिए एक्सपर्ट्स ने 11 सालों तक यूके बायोबैंक के 409,053 इंसानों की नींद का विश्लेषण करने के बाद ग्लूकोमा के 8690 मामलों की पहचान की।
देखा गया कि प्रतिदिन 7 से 8 घंटे की स्वस्थ नींद वालों की तुलना में खर्राटे लेने वालों और दिन में भी नींद का अनुभव करने वालों में ग्लूकोमा होने की संभावना 10% अधिक थी।
अनिद्रा और कम या देर तक सोने वालों में इस बीमारी के होने की संभावना 13% अधिक थी। विभिन्न प्रकार के ग्लूकोमा की जांच किए जाने पर भी परिणाम समान थे।
गौरतलब रहा कि ग्लूकोमा से पीड़ित लोगों की उम्र अधिक थी और उनमें पुरुष ज़्यादा थे। उन्हें अधिक स्मोकिंग, ब्लड प्रेशर या डायबिटीज की समस्या भी थी।
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एक्सपर्ट्स के मुताबिक़, ख़राब नींद से आंखों में आंतरिक दबाव बढ़ता है जिससे ग्लूकोमा का विकास होता है। यह समस्या शरीर में नींद के हार्मोन बहुत कम बनने से भी संभव है।
डिप्रेशन और चिंता करने से अधिक बनने वाले कोर्टिसोल हार्मोन के कारण भी आंखों में आंतरिक दबाव बढ़ सकता है।
नतीजों के अनुसार, लंबे समय तक ख़राब नींद की समस्या बनी रहने से ऑप्टिक नर्व को सीधे-सीधे नुकसान पहुंचा सकता है।
ग्लूकोमा रोकने के लिए नींद की समस्या वालों को समय रहते नेत्र-संबंधी जांच की आवश्यकता बताई गई है।