नींद की कमी (Sleep insufficiency) से हमारे जीवन पर क्या असर पड़ता है, इस विषय में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने हाल ही में कुछ खुलासे किए है।
लाइफस्टाइल, महामारी से उपजे तनाव या देर रात तक कंप्यूटर-मोबाइल आदि के इस्तेमाल से हुई नींद की कमी, मनुष्य की एनर्जी घटाकर अगले दिन के कार्यों को प्रभावित करती है।
यही नहीं, इससे गुस्से और डिप्रेशन में बढ़ोतरी भी हो सकती है।
ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में हुई एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने ऐसे ही हालात देखे।
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उन्होंने विशेष रूप से डिजाइन किए गए एक स्लीप सेंटर में 15 से 17 साल के 34 किशोरों को सोने के लिए राजी किया।
सभी को लगातार पांच रातों के लिए पांच घंटे, साढ़े सात घंटे और 10 घंटे सोने वाले ग्रुप में बांटा गया।
जागने के हर तीन घण्टे बाद उनके मूड (Mood) का आकलन किया गया।
वैज्ञानिकों ने पाया कि पांच घंटे सोने वाले युवाओं ने अधिक उदास, क्रोधित और कन्फ्यूजन की स्थिति में होने की सूचना दी।
उनकी खुशी और एनर्जी में भी काफी कमी आई। लेकिन जब उन्हें 10 घंटे सोने दिया गया तो उनकी खुशी में काफी वृद्धि हुई।
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नींद में कमी का डर या चिंता पर कोई असर नहीं देखा गया। हालांकि, कमी के कम या मध्यम प्रभाव पांच या साढ़े सात घंटे की नींद तक ही सीमित पाए गए।
हैरानी की बात थी कि पांच घंटे की नींद लेने वालों के लिए खराब मूड के नकारात्मक प्रभावों से उबरे में दो रातों की नींद पर्याप्त नहीं रही। हालांकि, सोने से उनका मूड सकारात्मक रूप से ठीक होना शुरू हुआ।
ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना था कि अपर्याप्त नींद और मूड संबंधी विकारों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए लोगों को पर्याप्त नींद का महत्व बताना बहुत जरूरी है।
इस विषय से संबंधित लेख स्लीप पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।