बच्चों में बढ़ता नाटापन उनकी सेहत को तो नुकसान करता ही है, युवावस्था में कद को लेकर उनमें हीन भावना भी ला सकता है।
टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन (TCI) के एक नए अध्ययन के अनुसार, जन्म के बीच पर्याप्त अंतर बच्चों में नाटापन यानि स्टंटिंग (stunting) की संभावना को कम करने में मदद कर सकता है।
नाटापन तब माना जाता है जब एक बच्चे का उम्र के अनुसार कद बढ़ना कम हो जाता है।
वैसे तो इसके लिए आमतौर पर कुपोषण या स्वास्थ्य को जिम्मेवार ठहराया जाता है लेकिन इंस्टीट्यूट के एक नए अध्ययन के अनुसार, जन्म के बीच पर्याप्त अंतर न रखने से भी बच्चों में नाटेपन की संभावना हो सकती है।
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खबरों के अनुसार, संस्थान के सुनैना ढींगरा और प्रभु पिंगली ने पाया कि जन्म के बीच कम समयांतराल से पहले और बाद में पैदा हुए बच्चों के बीच की ऊंचाई में अंतर हो सकता है। लेकिन जब बच्चे अपने बड़े भाई-बहनों के कम से कम तीन साल बाद पैदा होते है तो यह अंतर लुप्त हो जाता है।
नाटेपन से ग्रस्त अधिकांश बच्चे भारत में
भारत में बच्चों के पैदा होने के बीच की अवधि में कुल प्रजनन दर की अपेक्षा बहुत कम प्रगति हुई है।
साल 2015 में, लगभग 60 फीसद महिलाओं के बच्चों में तीन वर्षों की तय अवधि से कम समय देखा गया।
एक अनुमान के अनुसार, इस अवस्था से ग्रस्त 69 मिलियन से अधिक बच्चे दक्षिण एशिया में रहते है, जिनमें से अधिकांश भारत में है।
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द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में भी 2017 में भारत के 723 जिलों में स्टंटिंग की व्यापकता 3.8 गुना बढ़कर 16.4 फीसदी से 62.8 फीसदी होना बताया गया।
माँ और बच्चे की सेहत को खतरा
कम ऊंचाई के अलावा नाटापन बच्चों में बीमारियां लाने और कम मस्तिष्क विकास से भी जुड़ा हुआ है। साथ ही, गर्भधारण के बीच कम समय माँ और नवजात बच्चे को भी कई तरह से प्रभावित करता है।
एक माँ के शरीर को बच्चे के जन्म के बाद प्रमुख पोषक तत्वों की भरपाई के लिए समय चाहिए इसलिए दोबारा जल्द गर्भधारण से भ्रूण को मिलने वाले पोषक तत्व और दूध का बनना सीमित हो सकता है।
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