तनाव (Stress) बढ़ने से बाल झड़ते है और सफेद (Gray) भी हो जाते है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इनका रंग वापस पहले जैसा हो सकता है।
जी हाँ, यह खोजने वाले वैज्ञानिक स्वयं भी जानकर आश्चर्यचकित हुए कि तनाव समाप्त होने पर बालों का रंग बहाल हो सकता है।
उनकी यह खोज चूहों पर हुए एक हालिया अध्ययन के विपरीत निकली, जिसमें कहा गया था कि तनाव से प्रेरित काले-सफेद बाल स्थायी रहते है।
ईलाइफ में प्रकाशित वैज्ञानिकों का यह अध्ययन, बालों के रंग पर तनाव से जुड़ी सदियों पुरानी अटकलों को नकारता प्रतीत होता है।
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अध्ययन करने वाले कोलंबिया यूनिवर्सिटी इरविंग मेडिकल सेंटर के विशेषज्ञों की मानें तो उम्र बढ़ने की जैविक प्रक्रिया एक निश्चित, सीधी रेखा में नहीं होती। यह कुछ हिस्सों में रुक सकती है और अस्थायी रूप से उलट भी सकती है।
रोमकूप के रूप में जब बाल त्वचा के नीचे उग रहे होते है, तो वे तनाव हार्मोन और अन्य चीजों से प्रभावित होते है।
सिर से बाहर निकलने पर वे शरीर के अंदर मिले प्रभावों को धारण कर लेते है। ऐसे में उन पर अच्छे या बुरे प्रभावों का असर साफ़ देखा जा सकता है।
जानकारी के लिए वैज्ञानिकों ने 14 इंसानों के बालों का विश्लेषण किया। उनके जीवन में आ रहे उतार-चढ़ाव से होने वाले तनाव को उनके द्वारा लिखी जा रही डायरी से पता किया गया।
वैज्ञानिकों ने देखा कि अध्ययन में भाग ले रहे कुछ इंसानों के काले-सफेद बाल, तनाव खत्म होते ही धीरे-धीरे अपने मूल रंग में वापस आने लगे।
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यह समझने के लिए कि तनाव कैसे सफेद बालों का कारण बनता है, वैज्ञानिकों ने बालों में मौजूद हजारों प्रोटीन के स्तरों को भी मापा और जाना कि प्रत्येक बाल की लंबाई में प्रोटीन का स्तर कैसे बदल गया।
उनके मुताबिक, बालों का रंग बदलने पर 300 प्रोटीन में परिवर्तन हुआ। साथ ही, एक गणितीय मॉडल से पता किया गया कि माइटोकॉन्ड्रिया में तनाव-प्रेरित परिवर्तन यह बता सकते है कि तनाव बालों को कैसे बेरंगा कर देता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रिया वास्तव में कोशिका के अंदर एक छोटे एंटेना की तरह होते है, जो मनोवैज्ञानिक तनाव सहित कई अलग-अलग संकेतों से प्रभावित होते है।
लेकिन तनाव और बालों के रंग के बीच माइटोकॉन्ड्रिया संबंध, चूहों के एक हालिया अध्ययन से एकदम अलग था, जिसमें तनाव-प्रेरित स्लेटी बाल होने के पीछे बालों के रोमकूप की स्टेम कोशिकाओं को हुआ जबरदस्त नुकसान बताया गया था।
वैज्ञानिकों की जांच में चूहों और इंसानों के बालों की जैविक प्रक्रिया अलग-अलग पाई गई।
उनके अनुसार, इंसानी बालों को काला-सफेद होने से पहले एक तय सीमा तक पहुंचना पड़ता है। अधेड़ अवस्था में, जब बाल उम्र की उस निश्चित सीमा के नजदीक होते है तो तनाव तेजी से उन्हें उस सीमा तक धकेलता है।
ऐसे में तनाव कम करके बालों को स्लेटी या खिचड़ी रंग होने से रोका जा सकता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस पर उम्र की बंदिशों का भी असर बताया।
उनके अनुसार, एक 70 वर्षीय व्यक्ति में तनाव कम करके वर्षों में सफेद हुए बालों को काला या फिर 10 वर्षीय बच्चे में तनाव बढ़ाकर उसके बालों को स्लेटी करना संभव नहीं।