कोरोना वायरस फैलाने वाले वेरिएंट्स (COVID-19 Variants) के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) कैसे प्रतिक्रिया करती है, इस बारे में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है।
ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन से पता चला है कि साल 2020 में कोरोना के शुरुआती वेरिएंट्स से संक्रमित लोगों में एंटीबॉडी (Antibodies) का उत्पादन हुआ, लेकिन ये एंटीबॉडी वायरस के वर्तमान संस्करणों के खिलाफ उतनी प्रभावी नहीं रह गई है।
ऐसे में वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि संक्रमण के बाद शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली की बजाए वैक्सीन लगवाना (Vaccination) अधिक सुरक्षित उपाय है।
हालांकि, उन्होंने उभरते हुए कोरोना वेरिएंट्स को कमजोर करने के लिए नई वैक्सीन बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
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अध्ययन का उद्देश्य COVID-19 संक्रमण से उत्पन्न इम्यूनिटी के स्तर, विस्तार और अवधि की जांच करने के साथ ही वायरस के बदलते रूपों का इम्यून सिस्टम पर प्रभाव जानना था।
इसके लिए वैज्ञानिकों की टीम ने पहले से ज्ञात 10 COVID-19 स्ट्रेंस और वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न, जिनमें SARS-CoV-2 स्ट्रेन (D614), अल्फा (B117), बीटा (B1351), गामा (P1) और जेटा (P2 ) शामिल थे, के प्रभाव को जांचा।
उन्होंने पिछले सात महीनों में कोरोना संक्रमित 233 व्यक्तियों के सीरम का विश्लेषण किया और समय के साथ बदलती इम्यूनिटी के स्तर को रोग की गंभीरता और वायरल संस्करण पर निर्भर पाया।
पता चला कि पहली लहर के दौरान विकसित एंटीबॉडी छह प्रकारों के वेरिएंट्स के खिलाफ कमजोर पड़ चुकी थी।
इसमें ऑस्ट्रेलिया में दूसरी लहर के दौरान देखे गए ऐसे तीन वेरिएंट्स भी शामिल थे, जिन्होंने यूके, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में कोरोना महामारी को बढ़ाया था।
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हालांकि, दिलचस्प बात यह थी कि कुछ लोगों में सभी COVID-19 वेरिएंट्स के खिलाफ बनी एंटीबॉडी का एक स्थिर और मजबूत स्तर भी मिला।
टीम का कहना था कि इस समूह के प्लाज्मा की जांच वायरस के खिलाफ उपयोगी साबित हो सकती है।
फिर भी बदलते वेरिएंट्स को निष्क्रिय करने के लिए वैक्सीन पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए, क्योंकि निरंतर वैक्सीन से अच्छे रिजल्ट मिल रहे है।
विभिन्न कोरोना वेरिएंट्स और इम्यून सिस्टम से जुड़ी यह स्टडी पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित हुई है।
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