बढ़ते वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव लगभग सभी देशों में देखे गए है, लेकिन भारत में यह समस्या विकराल होती जा रही है।
साल 2020 में अकेले दिल्ली में ही 54,000 इंसानों की ज़िन्दगी विकट होते इस दानव की भेंट चढ़ गई, ऐसा ग्रीनपीस साउथईस्ट एशिया (Greenpeace Southeast Asia) ने वायु गुणवत्ता आंकड़ों के विश्लेषण से बताया।
ग्रीनपीस इंडिया संस्था के अनुसार, हवा में बढ़ते प्रदूषण के अति सूक्ष्म कणों PM2.5 (Particulate Matter) की वजह से ऐसा हुआ है जो हवा में काफी देर तक रहते है।
PM2.5 स्तर बना चिंता का विषय
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प्रदूषित PM2.5 ऐसे महीन कण होते है जो मनुष्य के बाल से भी 100 गुणा पतले होते है और इन्हें नग्न आंखों से नहीं देख जा सकता। इन कणों के बनने की वजह केमिकल और ईधन का जलना बताया गया है।
रिपोर्ट में वैश्विक रूप से पांच सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में PM2.5 वायु प्रदूषण को अनुमानित 1,60,000 मौतों का जिम्मेदार ठहराया गया है।
विश्लेषण के मुताबिक, पिछले साल दिल्ली में वायु प्रदूषक स्तर WHO की निर्धारित सीमा से लगभग छह गुना ऊपर रहा।
लॉकडाउन के कारण हवा की गुणवत्ता में अस्थायी आराम के बावजूद, रिपोर्ट के नवीनतम आंकड़े तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता बताते हुए समाधान के तौर पर फॉसिल फ्यूल उत्सर्जन का खात्मा, रिन्यूएबल एनर्जी और टिकाऊ एवं सुलभ परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने की बात कहते है।
अन्य भारतीय शहरों में भी हालात चिंताजनक
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दिल्ली के अलावा अन्य भारतीय शहरों में भी इससे होने वाली हानि चिंताजनक है।
2020 में प्रदूषित हवा को मुंबई में अनुमानित 25,000 टाली जा सकने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और लखनऊ में भी क्रमश: 12000, 11000, 11000, और 6700 अनुमानित मौतों का अनुमान है।
ऐसे हो सुधार
रिपोर्ट में वायु प्रदूषण से कैंसर और स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों की संभावना बढ़ने, अस्थमा के मामलों में तेजी आने और COVID-19 लक्षणों की गंभीरता बिगड़ने की आशंका जताई गयी है।
संस्था से जुड़े विशेषज्ञों ने टिकाऊ और स्वच्छ स्रोतों से ऊर्जा की मांग को पूरा करने और शहरों को कम लागत और कार्बन उत्सर्जन न करने वाले परिवहन विकल्पों जैसे चलने, साइकिल चलाने और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा देना का सुझाव दिया है।
इससे न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार होगा बल्कि यह अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक धन को भी मजबूती देगा।
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