Physical punishment of children: बच्चों के व्यवहार को सुधारने या उनसे जुड़ी समस्याओं का समाधान मारना-पीटना नहीं है।
इससे उल्टा उनके व्यवहार और स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है। ऐसी आशंका वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हालिया स्टडी में जताई है।
द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी में, टीम ने पेरेंट्स या दूसरों द्वारा बच्चों की पिटाई और अन्य शारीरिक शोषण से जुड़े कुछ मामलों का विश्लेषण किया।
69 अध्ययनों की समीक्षा के बाद मिले सभी सबूतों ने यही संकेत दिए कि शारीरिक सजा बच्चों के विकास और कल्याण के लिए हानिकारक है।
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ज्ञात सबूतों के आधार पर वैज्ञानिकों ने सभी देशों से बच्चों के खिलाफ किसी भी तरह की शारीरिक प्रताड़ना को समाप्त करने की मांग की।
माता-पिता या अन्यों द्वारा की गई किसी भी तरह की शारीरिक प्रताड़ना से जुड़े नकारात्मक परिणाम सभी उम्र के बच्चों के जीवन पर हावी हो सकते है।
विशलेषण से पता चला कि जितनी बार भी बच्चों को शारीरिक दंड दिया गया, नकारात्मक परिणामों की भयावहता में वृद्धि हुई।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, माता-पिता अपने बच्चों की ये सोचकर पिटाई करते है कि ऐसा करने से उनके व्यवहार में सुधार होगा। दुर्भाग्य से, ऐसे माता-पिता के लिए विश्लेषण में स्पष्ट और ठोस सबूत मिले है कि शारीरिक दंड बच्चों के व्यवहार में सुधार नहीं करता है बल्कि इसे बदतर बना देता है।
मारने-पीटने से बच्चों को होने वाले नुकसान को देखते हुए वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के पॉलिसी मेकर्स से बच्चों की रक्षा करने और उनकी शारीरिक प्रताड़ना को समाप्त करने के लिए कानून बनाने का आग्रह किया है।
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गौरतलब है कि दुनिया के कई हिस्सों में पेरेंट्स और बच्चों की देखभाल करने वाले उनसे कथित दुर्व्यवहार के रूप में मारपीट करते है।
एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में 2 से 4 वर्ष की आयु के लगभग 25 करोड़ बच्चे नियमित रूप से शारीरिक दंड भुगतते है।
हालांकि, 62 देशों ने हिंसा के रूप में देखी जा रही इस कुप्रथा पर प्रतिबंध भी लगा दिया है।
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