कोरोना वायरस महामारी और इसके चलते हुए लॉकडाउन ने पूरे विश्व के लोगों की जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डाला है। इसके कारण उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या दुष्प्रभाव हुए, यह अब वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय बन गया है।
COVID-19 ने लगभग हर व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। ऐसे ही एक हालिया अध्ययन ओबेसिटी जर्नल (Journal of Obesity) में प्रकाशित हुआ जिसमे COVID-19 प्रेरित लॉकडाउन का लोगों की दैनिक दिनचर्या में आए परिवर्तन को जाँचा गया।
अध्ययन की माने तो कोरोना महामारी ने विश्व स्तर पर नींद के चक्र और सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। इस अध्ययन में, पेनिंगटन बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर (Pennington Biomedical Research Centre) के वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूके और 50 अन्य देशों के 7,753 प्रतिभागियों का ऑनलाइन सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य लॉकडाउन से पहले और उसके दौरान इन लोगों में जीवन शैली में आए बदलाव को निर्धारित करना था।
अध्ययन के परिणामों से पता चला कि सभी प्रतिभागियों में से 32.3 प्रतिशत लोगों का वजन सामान्य था, 32.1 प्रतिशत अधिक वजन वाले और 34.0 प्रतिशत मोटे थे।
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यह भी देखा गया कि लॉकडाउन के दौरान, स्वस्थ खाना खाने के स्कोर में वृद्धि हुई क्योंकि लोग अधिक बार घर पर खाना बनाते थे। हालांकि, यह भी नोट किया गया कि 25.8 प्रतिशत लोगों ने स्वस्थ स्नैकिंग (snacking) में खाने की सूचना दी, जबकि 43.5 प्रतिशत ने अस्वास्थ्यकर स्नैकिंग (unhealthy snacking) में वृद्धि की सूचना दी।
आगे यह भी नोट किया गया कि लॉकडाउन के दौरान लोगों के गतिहीन व्यवहार (sedentary behaviours) में वृद्धि हुई और शारीरिक गतिविधि ((physical activity) में धीरे-धीरे गिरावट आई। इससे मोटे लोगों में वजन में 33.4 प्रतिशत और बाकी प्रतिभागियों में 27.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
यह भी पाया गया कि जो लोग महामारी से पहले मोटे थे, उनमे ज्यादा चिंता करने के लक्षण बढ़े। इन लोगों ने लॉकडाउन लागू होने के बाद नींद आने के लिए एक बहुत समय लिया। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि मोटापे से ग्रस्त लोगों को उनकी चिंता का प्रबंधन करने के लिए स्क्रीनिंग प्रदान की जानी चाहिए। लॉकडाउन के दौरान मोटापे पर अंकुश लगाने के लिए और अधिक पहल की जानी चाहिए।
इस अध्ययन के लेखक लियन रेडमैन ने कहा, “कोरोना से बचने के लिए हमने खुद को घरों में कैद कर लिया। पर यह कदम हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। इस दौरान कई लोगों में ऐसी बीमारियां भी उभर आई हैं जो लॉकडाउन के न होने पर शायद लोगों को बीमार न करतीं।”
उन्होंने कहा, “हमारा अध्ययन यह नहीं कहता है कि लॉकडाउन करना गलत कदम था। यह कोरोना से बचाव के लिए सबसे जरूरी उपायों में से एक था। पर जरूरी शारीरिक गतिविधियों के अभाव में लोग कई बीमारियों से ग्रस्त हो गए हैं।”