अगर प्रोसेस्ड फ़ूड (processed foods) के प्रति विश्व की चाहत ऐसे ही रही तो 2050 तक चार अरब से ज्यादा लोग अधिक वजन वाले (overweight) और 1.5 बिलियन मोटे (obese) होंगे।
पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च (PIK) के विशेषज्ञों ने वैश्विक स्वास्थ्य (global health), खाद्य प्रणाली और पर्यावरण संकट की चेतावनी देते हुए कहा है कि प्रकृति को बनाये रखने की क्षमता को आघात पहुंचाते हुए ग्लोबल फ़ूड डिमांड (global food demand) मध्य शताब्दी तक 50 प्रतिशत की छलांग लगाएगी।
खाद्य उत्पादन पहले से ही दुनिया के ताजे पानी का तीन-चौथाई और भूमि का एक तिहाई सोख जाता है। साथ ही, एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
2050 तक दुनिया में 45 प्रतिशत अधिक वजन वाले लोग
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1965 और 2100 के बीच बदलती खाने की आदतों का शोधकर्ताओं ने खाने की मांग पर जनसंख्या वृद्धि, उम्र बढ़ने, शरीर के वजन में वृद्धि, शारीरिक गतिविधि में गिरावट और खाने की बर्बादी जैसे कई कारकों के चलते होने वाले प्रभावों का अनुमान लगाया।
उन्होंने पाया कि साल 2050 तक संभवतः चार अरब से अधिक लोग या दुनिया की आबादी का 45 प्रतिशत अधिक वजन वाले (overweight) लोगो का होगा। वर्तमान में नौ प्रतिशत की तुलना में 29 प्रतिशत जनसँख्या अधिक वजन वालों की होगी, जिनमे 16 प्रतिशत मोटे (obese) होंगे।
अध्ययन के लेखक मानते है कि भोजन की बढ़ती बर्बादी और पशु प्रोटीन की बढ़ती खपत का मतलब है कि हमारी कृषि प्रणाली का पर्यावरणीय प्रभाव नियंत्रण से बाहर हो जाएगा।
गलत खान-पान शैली से ज्यादा नुकसान
लेखकों ने कहा कि वैश्विक खाने की आदतें पौधों और स्टार्च-आधारित आहार से दूर, अधिक चीनी, फैट और पशु-स्रोत वाले खाने से भरपूर खाद्य पदार्थों की ओर जा रही है।
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इसी समय, अध्ययन में पाया गया कि बढ़ती असमानता के परिणामस्वरूप खाने की बर्बादी और नुकसान के साथ-साथ ऐसे भोजन, जो उत्पादन या भंडारण की कमी के कारण नहीं खाया जाता है, की वजह से शताब्दी के मध्य में लगभग आधे अरब लोग कुपोषित होंगे।
उनके अनुसार, दुनिया में पर्याप्त भोजन है लेकिन गरीब लोगों के पास इसे खरीदने के लिए पैसा नहीं है और अमीर देशों में लोग भोजन बर्बाद करने के आर्थिक और पर्यावरणीय परिणामों को महसूस नहीं करते।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल एक विशेष रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि मानवता को वनों की कटाई, उत्सर्जन पर अंकुश न लगाने और लम्बे समय से चली रही अनिश्चित खेती को न रोकने से खाद्य असुरक्षा और बढ़ते तापमान का सामना करना पड़ेगा।