बढ़ते जलवायु परिवर्तन (Climate change) के खतरे और जहरीले प्रदूषण (Toxic pollution) से इंसानों की सेहत को भारी नुकसान होने की संभावना है।
यूएस इंडियाना स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के शोधकर्ताओं ने जहरीले सूक्ष्म कणों, ग्रीनहाउस गैसों और इंसानी सेहत पर होने वाले खतरे के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध पाया है।
उनके अनुसार, जिन देशों में जहरीले प्रदूषण का फैलाव सबसे ज्यादा है, उन्हीं देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अधिक जोखिम मंडरा रहा है। यही नहीं, वहां के निवासियों की मृत्यु भी जहरीले प्रदूषण के चलते सबसे ज्यादा होने का अंदेशा है।
यह अनुमान उन्होंने जहरीले प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन प्रभावों का सामना कर रहे कई देशों के आंकड़ों का इस्तेमाल करके लगाया।
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पता चला कि सिंगापुर, रवांडा, चीन, भारत, सोलोमन द्वीप, भूटान, बोत्सवाना, जॉर्जिया, कोरिया गणराज्य और थाईलैंड जैसे शीर्ष 10 देशों को प्रदूषण से सर्वाधिक खतरा है।
ऐसे में, इन सभी देशों को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के खतरों को प्रभावी ढंग से निपटाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
अध्ययन के नतीजे बताते है कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उच्च जहरीले प्रदूषण और जलवायु प्रभावों के जोखिम वाले देशों में रहता है।
इस स्थिति में मानव समाज को नुकसान से बचाने के लिए प्रदूषण को कम करना महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण दोनों है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि चीन और भारत जैसे घनी आबादी वाले बड़े देशों में जहरीले प्रदूषण को कम करने से उनके पड़ोसी देशों को भी लाभ होगा।
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हालांकि, सबसे बड़ी समस्या यह है कि मानव स्वास्थ्य को होने वाले जोखिम को कम करने के लिए क्या कार्रवाई की जानी चाहिए और कौन इस कार्रवाई को अंजाम देगा।
लांसेट पत्रिका के अनुसार, भारत में साल 2019 के दौरान वायु प्रदूषण से लगभग 17 लाख मौत हुई थी। इसके बाद हाई ब्लड प्रेशर, तंबाकू, खराब भोजन और डायबिटीज से देश में कई लाख लोग मरे।
पीएलओएस वन पत्रिका में इस बारे में विस्तारपूर्वक छापा गया है।
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