दुनिया की एक चौथाई आबादी को COVID-19 वैक्सीन प्राप्त करने के लिए कम से कम साल 2022 तक इंतजार करना पड़ सकता है, ऐसी आशंका अध्ययनों में जताई गयी है।
अध्ययनों के विश्लेषकों के अनुसार, पूरे विश्व की लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या (3.7 बिलियन लोग) कोरोना संक्रमण से बचाने वाली वैक्सीन लेने के लिए तैयार है।
लेकिन COVID-19 टीकाकरण कार्यक्रम को लागू करना उतना ही चुनौतीपूर्ण होगा, जितना इसे विकसित करने से जुड़ी वैज्ञानिक चुनौतियाँ थी।
खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों की आबादी को इसकी आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत रणनीति की जरुरत है।
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बीएमजे (BMJ) द्वारा प्रकाशित दो अध्ययनों के अध्ययनकर्ताओं ने इस बारे में चेताया है।
क्या कहते है इस बारे में हुए अनुसंधान
जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए पहले अध्ययन ने विश्लेषण किया कि खरीदे जाने से पहले ही मिले आर्डर के आधार पर वैक्सीन को सार्वजनिक रूप से कैसे वितरित किया जा सकता है।
लेखकों के अनुसार, मध्य नवंबर 2020 तक कई देशों ने 13 वैक्सीन निर्माता कंपनियों से कुल 7.48 बिलियन डोज़ (3.76 बिलियन कोर्स) आरक्षित किए थे। इन खुराक का आधा (51 प्रतिशत) उच्च आय वाले देशों के लिए था, जो दुनिया की आबादी का सिर्फ 14 प्रतिशत ही है।
जो बचा हुआ होगा वो निम्न और मध्यम आय वाले देशों, जो दुनिया की 85 प्रतिशत से अधिक आबादी हैं, में बंट सकता है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उच्च आय वाले देश जो खरीदते है उसे कैसे बांटेगे और क्या अमेरिका और रूस विश्व स्तर पर सहयोग के इस प्रयास में भाग लेंगे?
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जांचकर्ताओं ने कहा कि यदि प्रत्येक उम्मीदवार को सफलतापूर्वक वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया को आंका जाए तो साल 2021 के अंत तक कुल अनुमानित वैक्सीन उत्पादन क्षमता 5.96 बिलियन है, जिसमें 6 यूएस डॉलर मूल्य प्रति कोर्स से लेकर 74 यूएस डॉलर प्रति कोर्स है।
लेखकों ने कहा कि भले ही सभी वैक्सीन निर्माता अपनी अधिकतम उत्पादन क्षमता तक पहुंचने में सफल रहे, लेकिन दुनिया की आबादी का कम से कम पांचवा हिस्सा साल 2022 तक संक्रमण से बचाने वाले इन टीकों को नहीं लगवा पाएगा।
ऐसा क्यों है
स्टडी से पता चलता है कि कैसे हाई इंकम वाले देशों ने COVID-19 वैक्सीन की भविष्य की सप्लाई को सुरक्षित कर लिया है लेकिन बाकी के विश्व की इन टीकों तक पहुंच सुनिश्चित नहीं है।
सरकारों और निर्माता कंपनियों को इन व्यवस्थाओं के चलते अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के माध्यम से COVID-19 टीकों के समान आवंटन के लिए आवश्यक आश्वासन देना चाहिए।
दूसरे अध्ययन में, चीन और अमेरिका स्थित शोधकर्ताओं ने टीके की आवश्यकता वाली आबादी का अनुमान लगाया ताकि दुनिया भर में निष्पक्ष और समान आवंटन रणनीतियों के विकास का मार्गदर्शन किया जा सके।
साथ ही उन्होंने COVID-19 टीकाकरण के लिए लक्षित जनसंख्या का आकार भौगोलिक क्षेत्र, टीके के उद्देश्यों (जैसे आवश्यक कोर सेवाओं को बनाए रखना, गंभीर संक्रमण को कम करना और वायरस फैलने को रोकना) और मांग कम होने पर वैक्सीन की अनिश्चितता के प्रभाव को देखा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि क्षेत्रों की लक्षित आबादी के आकार और उनके बीच में भिन्नता वैक्सीन की मांग और आपूर्ति के बीच के संतुलन को कमजोर करते है। विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में व्याप्त अक्षमता के कारण कोरोना वैक्सीन की घरेलू मांग को पूरा करने में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
अध्ययन का उद्देश्य सभी की जरूरत को समान रूप से पूरा करना
हालांकि दोनों अध्ययनों के लेखक स्वीकार करते हैं कि उनके विश्लेषणों में अनिश्चितता हो सकती है लेकिन इनके निष्कर्ष COVID-19 टीकों के निर्माण की विशालता और जटिलता, खरीद, वितरण और प्रशासन को इस तरह से करने पर जोर देते है जिससे विश्व के सभी राष्ट्रों और आबादी की जरूरत को समान रूप से पूरा किया जा सके।
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