एक नई रिसर्च ने बचपन से ही बच्चों के वजन (Weight) पर ध्यान देकर उनके मस्तिष्क की कार्यक्षमता (Brain Function) को बड़े होने तक बनाए रखने का सुझाव दिया है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की पत्रिका सर्कुलेशन में प्रकाशित रिसर्च यह दावा करती है कि बच्चों में वजन, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रखने से बढ़ती उम्र में भी उनका मानसिक स्वास्थ्य मजबूत रह सकता है।
बचपन की अच्छी सेहत व्यस्क होने पर कैसे दिल की बीमारियों के खतरों को कम कर दिमागी प्रदर्शन को सुधार सकती है, ऐसा बताने वाली यह पहली रिसर्च है।
दरअसल, घटती मानसिक क्षमता को हाई ब्लड प्रेशर, मोटापे, टाइप 2 डायबिटीज, धूम्रपान, शारीरिक निष्क्रियता और खराब आहार के साथ-साथ डिप्रेशन और निम्न शिक्षा स्तर जैसी समस्याओं से भी जुड़ा हुआ बताया गया है।
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अल्जाइमर (Alzheimer’s) और डिमेंशिया (Dementia) जैसी दिमाग को कमजोर करने वाली बीमारियां बचपन के मोटापे और अन्य दिल संबंधित रोगों को कंट्रोल करके ही पकड़ में आ सकती है।
ऐसी बीमारियों का कोई पक्का इलाज नहीं है। इसलिए, शुरू से ही सेहत पर ध्यान देकर इनसे बाद के जीवनकाल में बचा जा सकता है।
दिल की बीमारियों का दिमागी कार्यकुशलता से संबंध जानने के लिए वैज्ञानिकों ने फिनलैंड में 2,000 से अधिक वयस्कों में बचपन से लेकर बड़े होने तक एक रिसर्च की, जो लगभग 31 साल तक चली।
वैज्ञानिकों ने देखा कि ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और बॉडी मास इंडेक्स बचपन से लेकर 40 से अधिक उम्र तक दिमागी प्रदर्शन से जुड़े रहे।
जैसे-जैसे ब्लड प्रेशर, कुल कोलेस्ट्रॉल और खराब कोलेस्ट्रॉल बढ़ते गए, याददाश्त और सीखने की क्षमता में कम होती गई। यहाँ तक कि बचपन से जवानी तक चले मोटापे के कारण ध्यान देने, देखने, सीखने और समझने की क्षमता भी कम होती गई।
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रिसर्च के परिणाम स्पष्ट रूप से बताते है कि बचपन से ही बढ़ने वाले मोटापे और दिल की समस्याएं, उम्र बढ़ने पर मस्तिष्क की सेहत को कैसे प्रभावित करती जाती है।
हालांकि, वैज्ञानिको अभी यह जानने को उत्सुक थे कि बचपन या किशोरावस्था में वह कौन सी विशिष्ट उम्र होती है, जब दिल से जुड़ी समस्याएं दिमागी सेहत के लिए ध्यान देने लायक बन जाती है।
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