ब्रेड, नमक और पशु उत्पादों से बचने का चलन इंसानों में आयोडीन (Iodine) का स्तर कम कर सकता है।
ऐसी स्थिति में विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के होने वाले बच्चों को न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का खतरा पैदा हो सकता है।
यही नहीं, आयोडीन की कमी से भ्रूण के बौद्धिक विकास पर भी असर होने की संभावना आंकी गई।
ऐसे स्वास्थ्य जोखिम यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया द्वारा 31 शाकाहारियों और 26 मांसाहारियों के आयोडीन स्तर की तुलना करने वाले एक छोटे अध्ययन में देखे गए।
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दोनों समूहों के मूत्र नमूनों की जाँच से पता चला कि मांसाहारियों की तुलना में शाकाहारियों का आयोडीन कम था।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 100 माइक्रोग्राम प्रति लीटर आयोडीन स्तर दोनों समूहों में किसी का भी नहीं था।
इसके अलावा, आयोडीन युक्त नमक के बजाय गुलाबी या हिमालय नमक खाने वालों में आयोडीन का स्तर काफी कम था।
आयोडीन के अतिरिक्त, शाकाहारी समूह में सेलेनियम और बी12 का स्तर भी बहुत कम था, लेकिन मांसाहारियों की तुलना में उनमें लोहे, मैग्नीशियम, विटामिन सी, फोलेट और फाइबर की मात्रा अधिक थी।
2017 के एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग दो अरब लोग आयोडीन की कमी से ग्रस्त थे, जिनमें पांच करोड़ कई तरह की समस्याओं से पीड़ित थे।
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हल्के से मध्यम आयोडीन की कमी के चलते भाषा सीखने, याददाश्त और मानसिक कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
अध्ययन के विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान तो आयोडीन की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। इस कारण, गर्भाधान से पहले और पूरी गर्भावस्था में आयोडीन के 150 mcg सप्लीमेंट लेने की सलाह दी जाती है।
दुर्भाग्य से, ज्यादातर महिलाएं जरूरी खुराक नहीं लेती।
इसके अतिरिक्त, फोर्टिफाइड ब्रेड, आयोडीन युक्त नमक, समुद्री भोजन, अंडे और डेयरी खाद्य पदार्थों से भी आयोडीन की कमी पूरी की जा सकती है।
प्रतिदिन 100 ग्राम आयोडीन फोर्टीफाइड ब्रेड (लगभग तीन टुकड़ों) का सेवन करने वाली महिलाओं को, ऐसा न करने वाली महिलाओं की तुलना में, पांच गुना अधिक आयोडीन लेने का मौका मिल सकता है।
आहार में आयोडीन युक्त सामान्य नमक की जगह हिमालय नमक खाने का बढ़ता फैशन भी एक समस्या मानी गई।
इसलिए विशेषज्ञों ने गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की बढ़ती कमी और महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अभियान चलाने पर जोर दिया।
अध्ययन के निष्कर्षों को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित किया गया।