इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent fasting) यानी 24 घंटों में ही उपवास और खान-पान से कई स्वास्थ्य लाभ है।
उनमें मुख्यत: मेटाबॉलिज्म सुधारते हुए अधिक वजन तथा हृदय रोगों को घटाना प्रमुख है।
लेकिन एक हालिया स्टडी ने ऐसी फास्टिंग वयस्कों की अपेक्षा बच्चों और किशोरों के लिए हानिकारक मानी है।
चूहों पर हुई स्टडी में, लगातार इंटरमिटेंट फास्टिंग से युवा चूहों में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं का विकास रुकता मिला है।
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हालांकि, इंटरमिटेंट फास्टिंग से व्यस्क या बूढ़े चूहों की बीटा कोशिकाओं पर कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा।
नतीजों को देखते हुए विशेष रूप से किशोरावस्था के दौरान इंटरमिटेंट फास्टिंग से बचने की सलाह है।
बता दें कि हमारी पैंक्रियाज में बीटा नामक कोशिकाएं होती हैं, जो इंसुलिन नामक हार्मोन बनाती है।
इंसुलिन ब्लड शुगर स्तर को संतुलित करके सामान्य बनाए रखता है। इससे टाइप 2 डायबिटीज नहीं होती है।
फास्टिंग से बड़े चूहों के इंसुलिन में तो सुधार हुआ, लेकिन किशोर चूहों में कम इंसुलिन पैदा हुआ।
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उनकी बीटा कोशिकाओं का विकास रुक गया, जिससे डायबिटीज और कमजोर मेटाबॉलिज्म का खतरा था।
स्टडी ने बताया कि यही हाल टाइप 1 डायबिटीज वाले रोगियों में भी देखा गया है।
उनके विपरीत, बड़े चूहों की बीटा कोशिकाएं फास्टिंग से पहले ही परिपक्व होने के कारण अप्रभावित रहीं।
फास्टिंग से बीटा कोशिकाओं पर हुए प्रभावों को गहराई से समझने के लिए और खोज बाकी है।
कुल मिलाकर, इंटरमिटेंट फास्टिंग वयस्कों के लिए फायदेमंद, लेकिन बच्चों और किशोरों के लिए नुकसानदेह समझिए।
जर्मन वैज्ञानिकों की यह स्टडी सेल रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुई थी।