इंसुलिन (Insulin) की कार्यक्षमता में कमी आने से डिप्रेशन (Depression) बढ़ता है, ये कहना है वैज्ञानिकों का।
स्टैनफोर्ड मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने इंसुलिन प्रतिरोध यानी इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin Resistance) को प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार (Major Depressive Disorder) के बढ़ने से जुड़ा हुआ पाया है।
इस विकार के लक्षणों में निरंतर उदासी, निराशा, सुस्ती, नींद की गड़बड़ी और भूख न लगना शामिल है।
बचपन की दुर्घटना, किसी प्रियजन की मौत या COVID-19 महामारी का तनाव इस बीमारी में योगदान देने वाले कुछ कारणों में से है।
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हालांकि, संतोष की बात है कि आहार, व्यायाम और जरूरत पड़ने पर दवाओं द्वारा इंसुलिन प्रतिरोध को रोका या कम किया जा सकता है।
दरअसल, इंसुलिन हार्मोन के आदेश को शरीर की कोशिकाओं द्वारा सही से पालन न कर सकने पर यह स्थिति उत्पन्न होती है।
बता दें कि कोशिकाओं में भोजन से उत्पन्न ग्लूकोज पहुंचाने का काम इंसुलिन की मदद से ही पूरा होता है। लेकिन अत्यधिक कैलोरी, व्यायाम की कमी, तनाव और पर्याप्त नींद न लेने के कारण दुनिया की आबादी का बढ़ता अनुपात इंसुलिन प्रतिरोधी बनता जा रहा है।
इससे उनके खून में ग्लूकोज का स्तर जरूरत से ज्यादा हो जाता है। फलस्वरूप, डायबिटीज और अन्य हानिकारक बीमारियों का खतरा हो सकता है।
स्टैनफोर्ड टीम ने हजारों पुरुषों और महिलाओं से जुड़े विभिन्न अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण करके इससे संबंधित प्रमाण जुटाए है।
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टीम ने सभी के इंसुलिन प्रतिरोध बताने वाले तीन लक्षणों – फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज स्तर, कमर का घेरा और ट्राइग्लिसराइड-टू-एचडीएल अनुपात- की जांच की।
उनकी जांच के मुताबिक, ट्राइग्लिसराइड-टू-एचडीएल अनुपात द्वारा मापे गए इंसुलिन प्रतिरोध में मामूली बढ़त, प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार के नए मामलों में 89 फीसदी की वृद्धि से जुड़ी हुई मिली है।
इसी तरह, पेट की चर्बी में हर 5 सेंटीमीटर का विकास, डिप्रेशन की 11 फीसदी उच्च दर से संबंधित देखा गया है और 18 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर खून के फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज में वृद्धि, डिप्रेशन की 37 फीसदी उच्च दर को दर्शाती है।
यह स्टडी हाल ही में अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकियाट्री में ऑनलाइन प्रकाशित भी हुई है।