वैसे तो बढ़ता वायु प्रदूषण (air pollution) संसार के सभी देशों के लिए चिंता का विषय है लेकिन भारतीयों के लिए यह समस्या अब बहुत गंभीर रूप लेती जा रही है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट इस चिंता को और गहन कर रही है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (Global Burden of Disease – GBD) की रिपोर्ट की माने तो भारत विश्व में प्रदूषित देशों के पायदान में पहले नंबर पर है और देश की पूरी आबादी वायु प्रदूषण के चपेट में जीवन जीने को मजबूर है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी एक व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक अनुसंधान कार्यक्रम है जो प्रमुख बीमारियों, चोटों और जोखिम कारकों से मृत्यु दर और विकलांगता का आकलन करता है।
साल 2019 के अध्ययन पर आधारित इस वैश्विक स्तर पर जारी की गई रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं जो दुनिया भर के 116 देशों में लगे 10 हजार 408 वायु प्रदूषण मापन इकाईयों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि भारत की सौ प्रतिशत आबादी भारत सरकार के मानकों के आधार पर भी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के आधार पर भी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हो चुकी है।
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इस रिपोर्ट में यह भी गौर करने लायक है कि अफ्रीका और एशिया के देशों में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा संकट है। इसमें क्रम से भारत, नेपाल, कतर, नाइजीरिया, इजिप्ट ऊपर के छह प्रदूषित देश हैं, जबकि बांग्लादेश और पाकिस्तान नौंवे और दसवें स्थान पर है।
बच्चों पर हुआ बुरा असर
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया ने 56 लाख से अधिक शिशुओं को उनके जन्म के एक महीने के भीतर खराब हवा के कारण मरते हुए देखा गया। उनमें से भारत ने वायु प्रदूषण जनित बीमारियों के कारण अपने जन्म के एक महीने के भीतर अपने एक लाख से अधिक शिशुओं को खो दिया।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि 2019 में दुनिया में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों में लगभग 67 लाख लोगों की मौत हो गई। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस तरह की बीमारियां पिछले साल के दौरान भारत में मौत का सबसे बड़ा कारण बन गई हैं। GBD रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि Covid 10 का भारतीय फेफड़ों पर घातक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि वे वायु प्रदूषण के उच्च जोखिम के कारण पहले से ही कमजोर हैं।