अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर में मौजूद प्राकृतिक घड़ी का अनुसरण करना चाहिए, यह सलाह दी है यूके के वैज्ञानिकों ने।
उनके द्वारा किए गए एक बड़े पैमाने के नए अध्ययन ने इस बात के सबूत जुटाएं है कि जिन लोगों के सोने-जागने का स्वरूप उनकी प्राकृतिक शारीरिक घड़ी (Natural Body Clock) के विपरीत होता है, उनमें डिप्रेशन (Depression) और खराब स्वास्थ्य होने की संभावना अधिक होती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन को मॉलिक्यूलर सायकेट्री पत्रिका में प्रकाशित भी किया गया।
सुबह जल्दी उठने से डिप्रेशन कम होने के साथ ही सेहत भी सुधरती है, ऐसा बताने वाले इस अध्ययन को वैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा खुलासा कहा है।
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ऐसा होने के पीछे उनका सुझाव है कि समाज में सुबह 9 से शाम 5 तक काम करने का सिलसिला चला आ रहा है। लेकिन आधुनिक समय में इस स्वरुप में बदलाव से इंसानों की सेहत को नुकसान हुआ है।
पिछले कुछ अध्ययनों ने भी बताया था कि ज्यादा डिप्रेशन और खराब स्वास्थ्य रात की शिफ्ट में काम करने वालों में अधिक देखा गया।
इससे जुड़े और सबूतों के लिए वैज्ञानिकों ने काम और छुट्टी के दिनों में नींद में आई भिन्नता को मापने के लिए एक नया उपाय विकसित किया।
इसे 85,000 से अधिक इंसानों की कलाई पर बांधे गए एक्टिविटी मॉनिटर के माध्यम से प्राप्त नींद की स्थितियों से जोड़ा गया।
उन्होंने पाया कि प्राकृतिक घड़ी से उलट चल रहें इंसानों में खराब स्वास्थ्य के अलावा डिप्रेशन और चिंता भी ज्यादा थी।
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वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कार्य की जरूरत को पूरा करने के लिए रात को देर तक जागने वाले, सुबह जल्दी उठकर अपने शरीर की प्राकृतिक घड़ी के खिलाफ जा रहे थे।
कुल मिलाकर, उन्होंने पाया कि सुबह उठने वाले शरीर की प्राकृतिक घड़ी के हिसाब से चलते है। लेकिन यही इंसान जब शाम को शिफ्ट में काम करते है तो उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
इसलिए उनकी सलाह थी कि प्राकृतिक घड़ी के मुताबिक काम करने के शेड्यूल को जानकर देर रात तक जागने वालों के मानसिक स्वास्थ्य और सेहत में सुधार हो सकता है।
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