Plant based meat benefits: चिकन की अपेक्षा पौधे से बने मांस से मानव कोशिकाएं कम प्रोटीन सोख पाती है, ये कहना है एक हालिया रिसर्च का।
आजकल पौधे से बना मीट लोगों में ख़ासा लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन अमेरिकी विशेषज्ञों ने इसकी पोषण-संबंधी गुणवत्ता पर सवाल उठाए है।
उनके मुताबिक़, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मानव कोशिकाएं शाकाहारी मांस से कितना प्रोटीन ग्रहण कर सकती है।
एसीएस ‘जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री’ में छपी ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट का दावा है कि पशुओं के मुक़ाबले शाकाहारी मांस का प्रोटीन पूर्णतया उपयोग कर पाना मानव कोशिकाओं के लिए आसान नहीं है।
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ग़ौरतलब है कि बाज़ार में अब बिना सेहत, पर्यावरण और जानवरों को नुकसान पहुंचाए शाकाहारी बीफ से लेकर मछली तक उपलब्ध है।
मीट की नकल के लिए पौधों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है और सीज़निंग के साथ मिलाया जाता है। फिर, ऐसे मिश्रण को कई प्रक्रियाओं से गुजारने के बाद एक एक्सट्रूडर प्रोसेस से तैयार किया जाता है।
इस मिश्रण से बने उत्पादों को अक्सर जानवरों के मांस की तुलना में अधिक स्वास्थ्यप्रद माना जाता है।
दावा किया जाता है कि इन्हें बनाने में इस्तेमाल किए गए पौधे उच्च प्रोटीन और कम हानिकारक फैट वाले होते है।
हालांकि, प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला है कि मानव शरीर में शाकाहारी मांस के प्रोटीन पेप्टाइड्स जानवरों के मांस जितनी आसानी से नहीं टूटते।
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रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मानव कोशिकाएं चिकन के एक टुकड़े से मिलने वाले पेप्टाइड्स को पौधों से तैयार मीट की तुलना में ज़्यादा अवशोषित कर सकती है।
बता दें कि कई पेप्टाइड मिलकर प्रोटीन का गठन करते है।रिसर्च में सोया और गेहूं के ग्लूटेन से बने मांस का एक टुकड़ा लिया गया था। इस टुकड़े और चिकन मांस को एक एंजाइम के साथ पीसकर तोड़ा गया। मनुष्य भी इसी प्रक्रिया से भोजन को पचाते है।
पता चला कि मांस-विकल्प पेप्टाइड्स चिकन की अपेक्षा पानी में कम घुलनशील थे और मानव कोशिकाओं द्वारा भी अवशोषित नहीं किए गए।
नतीजों के बाद वैज्ञानिकों का कहना था कि अगला कदम उन तत्वों की पहचान करना होगा जो पौधे से बने मांस के पेप्टाइड तेजी से अवशोषित करने में मदद कर सकें।
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