बचपन में कठोर पालन-पोषण से गुजरने वाले बच्चों के दिमागी विकास पर इसका बुरा असर पड़ता है, ऐसा एक अध्ययन से पता चला है।
डेवलपमेंट एंड साइकोलॉजी पत्रिका में छपी एक रिसर्च में माता-पिता या अन्यों द्वारा बच्चों पर बार-बार गुस्सा करना, मारना या उन पर चिल्लाने को किशोरावस्था में उनके दिमाग के कम विकास से जुड़ा हुआ पाया गया।
सख्त पैरेंटिंग से बच्चों में चिंता या डिप्रेशन होने और उनके दिमागी संरचना के बीच संबंधों की पहचान करने वाली यह पहली रिसर्च है।
रिसर्च टीम का कहना था कि हमारे समाज में कठोर पैरेंटिंग प्रथाएं (harsh parenting practices) आम है। यहां तक कि दुनिया भर के अधिकांश लोग इसे सही भी मानते है।
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साल 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला था कि कठोर पालन-पोषण बच्चों में चिंता और डिप्रेशन के साथ-साथ मस्तिष्क के कार्यों में बदलाव ला सकता है।
लेकिन इस रिसर्च में देखा गया कि ऐसी सख्ती झेलने वाले बच्चों के मस्तिष्क के कुछ हिस्सों का विकास किशोरावस्था में आने पर भी नहीं हुआ।
रिसर्च में 2 से 9 वर्ष के बच्चों पर माता-पिता के सख्त रवैये और उनकी चिंता के स्तर को हर साल जांचा गया।
उसके बाद बच्चों के 12 और 16 साल का होने पर उनकी चिंता के स्तर का मूल्यांकन और दिमागी सरंचना में आए बदलाव को एमआरआई (MRI) से देखा गया।
परिणामों के अनुसार, बच्चों को मारने-पीटने या गुस्से में चिल्लाने से उनके मस्तिष्क में हुए परिवर्तन चिंताजनक थे।
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माता-पिता और समाज के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि कठोर पालन-पोषण के लगातार इस्तेमाल से बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक और मस्तिष्क विकास को नुकसान पहुंच सकता है।