Noise pollution: एक नई स्टडी ने आसपास शोरगुल (Ambient noise) रहने से स्ट्रोक (Stroke) का ख़तरा बढ़ने की संभावना जताई है।
कनाडा की मॉन्ट्रियल यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स की मानें तो बाहरी शोर में हर 10-डेसिबल (dBA) की वृद्धि से 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में स्ट्रोक का खतरा 6% तक बढ़ जाता है।
नॉइज़ एंड हेल्थ जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी के नतीजे अधिक यातायात वाले क्षेत्रों के निवासियों को सावधान रहने की हिदायत देते है।
स्टडी में वर्ष 2000 से 2014 तक मॉन्ट्रियल में रहने वाले लगभग 11 लाख लोगों पर शोर के 200 मीटर लेवल तक का असर जाना गया था।
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इस दौरान, 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के 25,000 से अधिक लोगों को स्ट्रोक के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
पता चला कि 21,000 से अधिक मरीज़ इस्केमिक स्ट्रोक (Ischemic stroke) से पीड़ित थे। यह स्ट्रोक तब होता है जब दिमाग़ के किसी हिस्से में ख़ून का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता है।
मॉन्ट्रियल द्वीप पर व्यस्त सड़कों के आसपास अत्यधिक शोरगुल होता है। इसलिए ये निष्कर्ष, व्यस्त ट्रैफिक के आसपास रहने वालों को स्ट्रोक का अधिक खतरा बताते है।
पहले हुए अध्ययनों में भी पाया गया है कि रात में 40 dBA और दिन में 55 dBA से ऊपर का शोरगुल थकान, तनाव, नींद या मूड संबंधी विकार और हृदय संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
बता दें कि 85 से लेकर 105 dBA तक के शोर में रहने से सुनने की क्षमता घटने लगती है।
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यही नहीं, 105 डीबीए और उससे अधिक का शोरगुल टिनिटस (Tinnitus) या बहरेपन का तत्काल ख़तरा पैदा कर सकता है।
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