Air pollution’s lower levels increase heart disease: बीमारियों को रोकने के लिए हमें साफ़ हवा की कितनी जरूरत है, इसे बताने वाली एक चिंताजनक रिपोर्ट हाल ही में जारी हुई है।
रिपोर्ट की मानें तो बढ़ती जनसंख्या, उद्योगों और शहरीकरण से बदतर होती हवा में लंबे समय तक रहने से स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट डिजीज का जोखिम बढ़ता है।
फिर भले ही यह स्तर यूरोपीय संघ और डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्दिष्ट सीमा से नीचे ही क्यों न हो।
इस बारे में स्वीडन और जर्मनी के वैज्ञानिकों ने द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक बड़े यूरोपीय अध्ययन में विस्तारपूर्वक लिखा है।
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अध्ययन के परिणाम दर्शाते है कि वर्तमान वायु गुणवत्ता निर्धारित करने वाले दिशानिर्देश इंसानों की सेहत को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करते है।
ऐसा विभिन्न यूरोपीय देशों के एक लाख से अधिक इंसानों पर 17 वर्षों तक प्रदूषण की मार देखने के बाद पता चला।
जांच में स्ट्रोक या घातक कोरोनरी हार्ट डिजीज होने का बारीक पार्टिकुलेट मैटर (fine particulate matter -PM2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ब्लैक कार्बन और ओजोन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से हुआ प्रभाव मापा गया।
बताते चलें कि PM2.5 माइक्रोन से कम व्यास वाले कण इंसानी बाल से भी सौ गुना ज्यादा पतले होते है और हवा में लंबे समय तक मौजूद रहते है।
वैज्ञानिकों ने रिहायशी इलाकों की हवा में 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पार्टिकुलेट मैटर की वृद्धि से स्ट्रोक के जोखिम में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
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उन्होंने शहरी क्षेत्रों में बढ़ते वायु प्रदूषण से स्ट्रोक होने का खतरा ध्वनि प्रदूषण की अपेक्षा कही ज्यादा बताया।
चिंताजनक बात तो यह थी कि वैज्ञानिक हवा में फैले इस ज़हर से दिल को सुरक्षित रखने की सीमा का पता लगाने में ही असमर्थ रहे।
अध्ययन में बारीक़ पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के हानिकारक प्रभाव डब्ल्यूएचओ और यूरोपीय संघ द्वारा निर्दिष्ट स्वच्छ हवा की सीमा के तय स्तर से भी कम हवा में रहने वालों में भी देखे गए।
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