डायबिटीज और मोटापा इलाज के बावजूद एक खास लिवर कैंसर के दोबारा होने का खतरा बढ़ा सकते है।
यह जानकारी जापान की एक स्टडी ने हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (Hepatocellular carcinoma -HCC) के संदर्भ में दी है।
हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा हेपेटाइटिस संक्रमण से जुड़ा एक प्रकार का लिवर कैंसर है।
उपचार के बाद इस कैंसर के दोबारा होने का डर रहता है। यह विश्व स्तर पर कैंसर संबंधित मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है।
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मोटापा और डायबिटीज फैटी लिवर रोगों को प्रभावित करते है, जिनसे लिवर सिरोसिस और HCC होते है।
स्टडी ने मोटापे और डायबिटीज से हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा में देर से पुनरावृत्ति का खतरा अधिक पाया है।
इसलिए लिवर कैंसर के उपचार में मोटापे और डायबिटीज की रोकथाम एक आवश्यक कदम हो सकता है।
विशेषज्ञों ने हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा के 1,644 रोगियों में डायबिटीज, मोटापे और पोस्टऑपरेटिव नतीजों के बीच संबंधों का विश्लेषण किया था।
परिणामों ने उपरोक्त समस्याओं के रोगियों में ऑपरेशन के दो साल बाद बीमारी दोबारा होने का खतरा अधिक बताया।
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यह खतरा मोटापे और डायबिटीज के कारण क्रमश: लगभग 1.5 और 1.3 गुना अधिक था।
मोटापे और डायबिटीज से ऑपरेशन के पांच साल बाद दोबारा बीमारी होने का डर क्रमश: 3.8 और 2 गुना अधिक था।
बता दें कि मोटापा से टाइप 2 डायबिटीज का विकास होता है और दोनों समस्याएँ अक्सर आपस में जुड़ी होती हैं।
इस पर हुई हालिया स्टडीज ने अगले 40 वर्षों तक मोटापा पीड़ितों की संख्या में छह गुना वृद्धि बताई है।
जबकि डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या साल 2040 तक 64.2 करोड़ होने का अनुमान है।
जापान के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की यह स्टडी लिवर कैंसर पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।