कई अध्ययनों में अधिक वज़न (Overweight) और मोटापा (Obesity) अनेकों बीमारियों की जड़ बताए गए है।
अब जर्मन वैज्ञानिकों ने भारी शरीर वाले इंसानों को कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal cancer) होने का ख़तरा भी अधिक बताया है।
उनकी नई रिसर्च की मानें तो पेट के कैंसर का यह ख़तरा वज़न घटाने के बावजूद भी बना रह सकता है।
हीडलबर्ग स्थित जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि बढ़ते वज़न से कोलोरेक्टल कैंसर भी धीरे-धीरे विकसित होता जाता है।
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यह अवस्था ठीक उसी तरह से है जैसे धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर को बढ़ाता जाता है।
वैज्ञानिक दल ने वज़न या मोटापे से ग्रस्त होने और कैंसर विकसित होने की क्षमता इंसानों की सोच-समझ से अधिक तेज बताई है।
यह चौकाने वाली जानकारी 10,000 से अधिक इंसानों के स्वास्थ्य डाटा से मिली है। उनमें से 5,600 को कोलोरेक्टल कैंसर था।
दो दशक तक चली स्टडी में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की गणना से अधिक वज़न या मोटापा मापा गया था।
बता दें कि 25 से अधिक बीएमआई वालों को अधिक वजन, जबकि 40 से अधिक को मोटापे से ग्रस्त माना जाता है।
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ये देखा गया कि हर वर्ष बीएमआई बढ़ने से कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना में भी इज़ाफ़ा हो रहा था।
हालांकि ऐसा क्यों होता है और कोलोरेक्टल कैंसर के विकास में अतिरिक्त वजन कैसे योगदान देता है, यह वैज्ञानिकों को पूरी तरह से समझ नहीं आया।
जान लीजिए कि कोलोरेक्टल कैंसर वह कैंसर है जो कोलन या मलाशय में होता है। इसका कोलोनोस्कोपी द्वारा जल्दी पता लगाया जा सकता है।
स्टडी में चेतावनी देते हुए अधिक वज़न और मोटापे को शुरुआती समय में ही रोकने की सलाह दी गई है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, कोलोरेक्टल कैंसर के जोख़िम का शरीर पर काफी मजबूत प्रभाव हो सकता है।
यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति ने बाद में अपना वजन स्वस्थ स्तर तक घटा भी लिया, तो भी उसके शरीर पर पिछले वजन का दुष्प्रभाव जारी रहने का डर है।
यह समस्या धूम्रपान के समान ही है, जिसमें सिगरेट की लत छोड़ने या घटाने से भी फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई करना कठिन हो जाता है।
जामा ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित नतीजों का सुझाव है कि युवा अवस्था में ही अधिक वजन या मोटापा होना से पूरे वयस्क जीवनकाल में कैंसर का जोख़िम बना रहता है।
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