Lancet Countdown Report: तेजी से बढ़ते जलवायु परिवर्तन (Climate change) के दुष्प्रभावों पर चिंता जताती एक नई स्टडी हाल ही में प्रकाशित हुई है।
स्टडी के अनुसार, साल 2020 से 2022 तक अकल्पनीय मौसम ने हर महाद्वीप में तबाही मचाई है।
नतीजन, पहले से ही COVID-19 महामारी के प्रकोप से जूझ रही स्वास्थ्य सेवाओं पर और दबाव बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में भी हाल के वर्षों में देशवासियों को तीव्र गर्मी का सामना करना पड़ा है।
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और ख़ुलासा करते हुए द लैंसेट जर्नल की स्टडी ने देश में वर्ष 2000-2004 और 2017-2021 के बीच अत्यधिक गर्मी (Heatwave) के कारण होने वाली मौतों में 55% की वृद्धि बताई है।
कई देशों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सहयोग से हुई स्टडी में कहा गया है कि साल 2021 में गर्मी के चलते भारतीयों के संभावित 167.2 अरब काम के घंटों का नुकसान हुआ है।
यह नुकसान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 5.4% बराबर की आय का है।
विशेषज्ञों ने देश के कई हिस्सों में नियमित रूप से चलने वाली गर्मियों की लू को लंबा, अधिक असहनीय और लगातार ताकतवर होता बताया है।
103 देशों के मौसम और जनसंख्या स्वास्थ्य पर आधारित वार्षिक लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले ख़ुलासे हुए है।
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विशेषज्ञों ने मार्च और अप्रैल के बीच भारत और पाकिस्तान में चली हीटवेव के जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक होने की संभावना जताई है।
उन्होंने अत्यधिक गर्मी से लोगों के स्वास्थ्य पर नकारातमक असर पड़ना तय बताया है।
इससे हृदय और सांस की बीमारियां बढ़ने के अलावा हीट स्ट्रोक, गर्भावस्था पर प्रतिकूल असर, खराब नींद, मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट और चोट संबंधित मौतों में वृद्धि हो सकती है।
विशेषकर, बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत कही गई है।
लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर गर्मी से होने वाली मौतों में दो तिहाई की वृद्धि हुई है।
स्टडी में, साल 2021 के दौरान पेट्रोल, डीज़ल और कोयले के धुएं से भारत में 3,30,000 से अधिक लोगों की मौत का अनुमान है।
इसके पीछे गंभीर वायु प्रदूषण करने वाले पार्टिकुलेट मैटर को जिम्मेदार ठहराया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पार्टिकुलेट मैटर की औसत सीमा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश से 27 गुना अधिक है।
रिपोर्ट के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जलवायु संकट को जानलेवा बताया है।
उन्होंने जहरीले वायु प्रदूषण, संक्रामक बीमारी, अत्यधिक गर्मी, सूखा, बाढ़ और खाद्य सुरक्षा में कमी से न केवल पृथ्वी बल्कि इंसानों के स्वास्थ्य में भी गिरावट का अंदेशा जताया है।
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