इंसानी स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन (climate change) का प्रभाव तेज हो गया है।
अगर इस दिशा में सभी देशों की सरकारों द्वारा तेजी से कार्रवाई न की गई तो भविष्य में इसके और बढ़ने से उच्च तापमान, खराब वायु गुणवत्ता और जंगलो में आग लगने की घटनाएं ज्यादा हो जाएगी, परिमास्वरूप सांस और हृदय से संबंधित बीमारियों की दर ऊँची होगी।
वैज्ञानकों की यह चेतावनी द लैंसेट ऑन्कोलॉजी नामक पत्रिका में एक अध्ययन द्वारा प्रकाशित की गयी है।
इस शोध के प्रमुख के प्रमुख लेखक और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रॉबर्ट ए हिएट ने चिंता जताते हुए कहा है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को कम करने की लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को धीमा करने के लिए ट्रैक पर नहीं है।
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गर्म तापमान और बारिश के बदलते ढंग मछरों और मक्खियों से होने वाली बीमारियों जैसे मलेरिया, डेंगू और इन्फेक्शन के जोखिम को बढ़ाते है। “चरम मौसम की घटनाओं के कारण मौत, चोट, विस्थापन, और स्वास्थ्य देखभाल वितरण में बाधा होती है,” लेखकों ने लिखा।
किस तरह की बीमारियों का प्रकोप बढ़ेगा
लेखकों ने 21 वीं सदी में कैंसर का व्यापक रूप से मृत्यु का प्रमुख कारण होने की भविष्यवाणी की है।
उनकी माने तो सबसे बड़े कैंसर बढ़ने वाले खतरों में वायु प्रदूषण, अल्ट्रावायलेट रेडिएशन, औद्योगिक विषाक्त पदार्थों, भोजन और पानी की आपूर्ति में व्यवधान होना शामिल है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, एक व्यापक मॉडलिंग अध्ययन ने 2050 तक खाद्य आपूर्ति में बदलाव के परिणामस्वरूप, दुनिया भर में आधे से अधिक जलवायु-संबंधी मौतों की भविष्यवाणी की, जिसमें कैंसर से होने वाली मौतें भी शामिल हैं।
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पहले से ही दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का प्राथमिक कारण, फेफड़ों के कैंसर, के बढ़ने का अनुमान है जो वायु प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर के बढ़ने से है। इस समस्या से फेफड़ों के कैंसर के नए मामलों में 15 प्रतिशत तक बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
कैंसर नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के बुनियादी ढांचे में भी बड़े व्यवधान होने की संभावना है, जो सभी तरह के कैंसर को प्रभावित कर सकता है।
कोरोना महामारी ने इस व्यवधान का एक स्पष्ट उदाहरण प्रदान किया है, जिसके चलते चिकित्सा संसाधनों को कैंसर बीमारी से दूर रखा गया है और हजारों रोगियों को कैंसर की स्क्रीनिंग में वायरस से संक्रमण होने के डर से देरी हो रही है।
लेखकों ने कहा कि प्रदूषण को कम करके फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन को धीमा करने और कैंसर के मामलों और मौतों को रोकने के लिए कई क्लीनिकल, व्यवहारिक और नीतिगत समाधान है।