शरीर पर ज़्यादा चर्बी (Body fat) पार्किंसंस या अल्जाइमर (Alzheimer’s) रोग होने के खतरे में वृद्धि कर सकती है।
यह कहना है चीन और स्वीडन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा की गई एक नई स्टडी का।
स्टडी ने पेट या बाहों पर ज़्यादा चर्बी (Fat) से अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां होने की अधिक संभावना जताई है।
स्टडी में शामिल इंसानों की जांच में ज़्यादा बॉडी फैट वालों को सामान्य जन की अपेक्षा उपरोक्त रोगों का अधिक खतरा था।
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इसके विपरीत, ताकतवर मांसपेशियों (Strong muscles) वालों को कमजोर मांसपेशियों वालों की तुलना में इन बीमारियों के होने की संभावना कम थी।
बता दें कि अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी मानसिक बीमारियाँ दुनिया भर में 60 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती हैं।
जनसंख्या की उम्र बढ़ने के साथ यह संख्या बढ़ने की भी उम्मीद है। इसलिए कुछ निवारक उपायों की पहचान करना अत्यंत ज़रूरी है।
स्टडी विशेषज्ञों ने लोगों की कमर और बाँहों की चर्बी घटाकर इन बीमारियों के होने की आशंका में कमी का अनुमान लगाया है।
इस स्टडी में शामिल 56 वर्ष की औसत आयु के 412,691 महिलाओं और पुरुषों पर नौ साल तक नज़र रखी गई थी।
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स्टडी की शुरुआत में सभी की कमर और कूल्हे का माप, पकड़ की ताकत, बोन डेंसिटी और बॉडी फैट दर्ज किया गया था।
स्टडी के दौरान, 8,224 लोगों में मुख्य रूप से अल्जाइमर, डिमेंशिया और पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग विकसित हुए।
स्वस्थ लोगों की अपेक्षा पेट व बाँहों पर अधिक चर्बी वालों में उपरोक्त रोगों के विकसित होने की संभावना क्रमश 13% और 18% अधिक थी।
लेकिन ताकतवर मांसपेशियों वालों में कम ताकत वालों के मुकाबले मानसिक रोगों के विकसित होने की संभावना 26% कम थी।
विशेषज्ञों ने शारीरिक संरचनाओं एवं न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का संबंध हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी घटनाओं से जुड़ा होना संभव बताया।
उन्होंने अल्जाइमर, पार्किंसंस या अन्य नर्वस सिस्टम के रोगों की रोकथाम के लिए हृदय स्वास्थ्य पर ध्यान देना महत्वपूर्ण कहा।
क्योंकि इस स्टडी में मुख्य रूप से यूके और आयरलैंड के गोरे शामिल थे, इसलिए नतीजे अन्य आबादी पर लागू नहीं हो सकते।
अधिक जानकारी अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के जर्नल न्यूरोलॉजी में छपी रिपोर्ट से मिल सकती है।
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