दिन रात अपने कार्य में ही लगे रहने वाले (workaholic) मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब होने की संभावना ज्यादा होती है।
वर्कहॉलिक ऐसे लोग होते है जो आमतौर पर हर हफ्ते दूसरों की तुलना में निश्चित वर्क ऑवर से अधिक घंटे काम में डूबे रहते है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि ज्यादा समय तक कार्य में डूबे रहने वालों में कम कार्य लत से जुड़े लोगों की अपेक्षा अवसाद, चिंता और नींद की बीमारी होने का जोखिम दोगुना होता है।
इसके अलावा महिलाओं को पुरुषों की तुलना में वर्कहॉलिक होने से दोगुना खतरा होता है।
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जॉब की डिमांड सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर
शोधकर्ताओं ने पाया कि काम की लत के जोखिम को विकसित करने में जॉब की डिमांड सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है। इसलिए इसे संबंधित मैनेजर द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए।
अध्ययन के लिए, टीम ने जॉब डिमांड-कंट्रोल-सपोर्ट मॉडल (JDCS) के तहत सुझाई गई चार जॉब केटेगरी में काम की लत (जॉब डिमांड और जॉब कण्ट्रोल) का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव देखा।
जॉब डिमांड में तनाव (कम या ज्यादा) और कार्य की प्रवृति (एक्टिव या पैसिव) को देखा गया जबकि जॉब कण्ट्रोल में एक कर्मचारी का उसके काम पर कितना नियंत्रण है, यह जाना गया।
अध्ययन में प्रभाव की जांच की
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शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए 1,580 फ्रांसीसी श्रमिकों में से 187 का डेटा एकत्र किया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को उनके व्यावसायिक समूहों के आधार पर बांट दिया और काम की लत के खतरे का मानसिक और शारीरिक सेहत के बीच संबंध की जांच की।
परिणाम बताते हैं कि कार्यस्थल पर हाई जॉब डिमांड से वर्क एडिक्शन के खतरे ज्यादा थे। लेकिन जॉब कण्ट्रोल से कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
ज्यादा जॉब डिमांड वाले वर्कर्स को ज्यादा एक्टिव रहना पड़ता था इसलिए उनमे कम डिमांड के जॉब वर्कर्स की अपेक्षा ज्यादा तनाव, वर्कलोड और काम में डूबे रहने की लत देखी गयी।