बढ़ते वायु प्रदूषण (Air Pollution) से इंसानों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को उजागर करती कोई न कोई रिसर्च आए दिन प्रकाशित होती रहती है।
इसी कड़ी में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक बड़े अध्ययन ने बताया है कि कैसे बचपन के दौरान उच्च वायु प्रदूषण में सांस लेने से बच्चों और किशोरों को बड़े होने पर हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) की शिकायत हो गई।
अध्ययन में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोप में फैले वायु प्रदूषकों के संपर्क में आए इंसानों के स्वास्थ्य पर हुए प्रभाव जाने गए।
इसमें विशेषज्ञों ने दुनिया भर में हुए 14 वायु प्रदूषण अध्ययनों के विश्लेषण से ब्लड प्रेशर पर हुए दीर्घकालिक परिणामों को जाना।
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वहीँ दूसरे अध्ययनों ने डीजल से मांसपेशियों पर; वायु प्रदूषकों से हाई ब्लड प्रेशर पर; ज्यादा वायु प्रदूषण में रहने वालों में हार्ट फेलियर के कारण अस्पताल में भर्ती होना और लंबे समय तक उच्च पार्टिकुलेट मैटर में रहने के बाद स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा बताया।
उनके अनुसार, बचपन और किशोरावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर बढ़ने से वयस्कता में दिल की बीमारी का खतरा हो जाता है।
विश्लेषण में 3,50,000 से अधिक बच्चों और किशोरों के सेहत संबंधी आकंड़ों को देखा गया।
अध्ययन में विशेष रूप से वायु प्रदूषक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, PM2.5 के सूक्ष्म कणों और PM10 के बड़े मोटे कणों के संपर्क में रहने से हुए दुष्प्रभावों को बताया गया।
विश्लेषण ने निष्कर्ष निकाला कि थोड़े समय में भी PM10 के संपर्क में आने से युवाओं में सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर बढ़ गया। लंबे समय तक PM2.5, PM10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में रहने से भी सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर अधिक हुआ।
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विशेषज्ञों का सुझाव था कि बच्चों और किशोरों के ब्लड प्रेशर पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए प्रदूषकों को घटाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, उनके ब्लड प्रेशर को नियमित रूप से मापना भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर वालों की पहचान जल्दी की जा सके।