अभी तक हुए अध्ययनों में यही कहा जाता रहा है कि शरीर में ग्लूकोज कम होने से मांसपेशियों (muscles) को नुकसान होता है और उनका आकार कम होना शुरू हो जाता है।
लेकिन टोक्यो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा की एक हालिया रिसर्च में मांसपेशियों की मरम्मत (muscle repair) से जुड़ी प्रमुख सैटेलाइट कोशिकाओं (satellite cells) ने कम ग्लूकोज में ही बेहतर वृद्धि की।
वैज्ञानिकों को यह पारंपरिक ज्ञान के विपरीत लगा जिसमें शारीरिक गतिविधयों को अच्छी तरह से करने के लिए हमारी मांसपेशियों की कोशिकाओं को अधिक ग्लूकोज की आवश्यकता होती है।
हर रोज होने वाली एक्टिविटी से हमारी मांसपेशियों में टूट-फूट होती रहती है। ऐसे में मांसपेशियों की कोशिकाएं उन्हें स्वस्थ स्थिति में रखने के लिए लगातार मरम्मत करती रहती है।
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ऐसी प्रक्रिया को पूर्ण करने में मांसपेशियों से जुड़ी सैटेलाइट कोशिकाओं का विशेष महत्व है, जो प्रत्येक मांसपेशी के फाइबर में मौजूद मायोफाइबर कोशिकाओं (myofiber cells) के क्षतिग्रस्त होने पर अपनी संख्या कई गुना बढ़ा लेती है और अंत में मायोफाइबर कोशिकाओं से मिलकर उन्हें और मजबूत बना देती है।
इस प्रक्रिया से न केवल मांसपेशियों की मरम्मत होती है बल्कि उनकी सेहत और आकार भी बना रहता है।
सैटेलाइट कोशिकाओं का अध्ययन करते समय वैज्ञानिकों ने देखा कि ज्यादा ग्लूकोज से उनके बढ़ने की दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
यह उस धारणा के विपरीत था जिसमें कोशिकाओं की वृद्धि के लिए ग्लूकोज को आवश्यक माना जाता है। ग्लूकोज से ही बहुत अधिक कोशिकीय गतिविधियों को संचालित करने वाला ईंधन (ATP) बनता है।
फिर भी, टीम ने रिसर्च में कम ग्लूकोज स्तर के बावजूद बड़ी संख्या में कोशिकाओं का बढ़ना देखा।
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हालांकि, उनका कहना था कि सिर्फ माशपेशियों को छोड़कर ऐसा प्रभाव अन्य कोशिकाओं पर नहीं हुआ।
ग्लूकोज के स्तर को कम रखकर वैज्ञानिक एक ऐसी स्थिति बनाने में सक्षम थे, जहां केवल सैटेलाइट कोशिकाएं प्रसार कर सकती थीं।
यहां तक कि उन्होंने प्रयोगशाला में ऐसी कोशिकाओं को ग्लूकोज पचाने वाले एंजाइम, ग्लूकोज ऑक्सीडेज (glucose oxidase) से जोड़कर और ग्लूकोज का निम्न स्तर करके भी बढ़ाया।
लेकिन ये कोशिकाएं अपने विकास के लिए किस स्रोत से ऊर्जा लेने में सक्षम थी, इस बारे में वैज्ञानिकों को अभी कुछ पता नहीं चला।