Chronic lymphocytic leukemia treatment: एक हालिया स्टडी ने एक्सरसाइज को क्रोनिक लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया के इलाज में सहायक बताया है।
मध्यम से कड़ी एक्सरसाइज (Exercise) कैंसर के इस रूप का इलाज करने वाली एंटीबॉडी थेरेपी (Antibody therapy) के असर में तेजी लाती मिली है।
स्टडी में मरीजों द्वारा एक्सरसाइज करने से कैंसर-रोधी प्रतिरक्षा कोशिकाओं (Anti-cancer immune cells) की संख्या में वृद्धि देखी गई।
मरीजों के ब्लड सैंपल में ये कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को मारने में लगभग दोगुनी प्रभावी थीं।
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इसके अलावा, एक्सरसाइज के तुरंत बाद खून में कैंसर कोशिकाओं की संख्या बढ़ गई थी।
ऐसा होने से वे एंटी-कैंसर इम्यून सेल्स और एंटीबॉडी थेरेपी के हमले के प्रति अधिक कमज़ोर हो गईं।
नतीजों ने कुछ कैंसरों के इलाज में एंटीबाडी थेरेपी को एक्सरसाइज संग अपनाने की सिफारिश की है।
बता दें कि क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया नामक ब्लड कैंसर श्वेत रक्त कोशिकाओं (white blood cells) को प्रभावित करता है।
नई स्टडी में रिटक्सिमैब (Rituximab) नामक एंटीबॉडी थेरेपी पर एक्सरसाइज के प्रभाव जाने गए थे।
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यह एंटीबाडी कैंसर कोशिकाओं की सतह पर एक विशिष्ट प्रोटीन से चिपक जाती है।
नतीजन, एंटी-कैंसर इम्यून सेल्स कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और नष्ट करने में सक्षम होती हैं।
स्टडी में क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया के 45 से 82 वर्षीय 20 मरीज़ शामिल थे।
परीक्षण के दौरान, वैज्ञानिकों ने उन्हें 30 मिनट तक मध्यम से तेज गति की सायक्लिंग करने के लिए कहा।
एक्सरसाइज से पहले और तुरंत बाद उनके ब्लड सैंपल लिए गए। एक घंटे बाद तीसरा सैंपल लिया गया।
एक्सरसाइज के बाद, एंटी-कैंसर इम्यून सेल्स की संख्या में 254% की वृद्धि पाई गई।
यही नहीं, एक्सरसाइज के बाद लिए गए सैंपल में कैंसर कोशिकाएं 67% अधिक थीं।
खून में Rituximab दवा होने से एंटी-कैंसर सेल्स पहले की अपेक्षा एक्सरसाइज के तुरंत बाद कैंसर कोशिकाओं को मारने में दोगुनी प्रभावी थीं।
वैज्ञानिकों ने बताया कि कैंसर कोशिकाएं अक्सर शरीर में छिपने की कोशिश करती हैं।
लेकिन ऐसा लगता है कि एक्सरसाइज उन्हें खून में वापस धकेल देती है। यहाँ वे एंटीबॉडी थेरेपी और एंटी-कैंसर सेल्स का आसानी से शिकार बन जाती है।
फिलहाल इस स्टडी के नतीजों को बड़े पैमाने पर होने वाले परीक्षणों की आवश्यकता होगी।
लेकिन यह तय है कि कैंसर इलाज से पहले, दौरान और बाद में एक्सरसाइज करना लाभकारी हो सकता है।
यूके और ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटीज की यह स्टडी, ब्रेन, बिहेवियर और इम्युनिटी जर्नल में प्रकाशित हुई थी।