बढ़ती उम्र में लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए अक्सर स्ट्रेंथ ट्रेनिंग (Strength Training) की जगह पैदल चलने (Walking) को ही प्राथमिकता देना शुरू कर देते है।
उनका तर्क होता है कि बुढ़ापे में बॉडी बनाकर क्या करना है, जिम जाने का टाइम नहीं, ट्रेनिंग का दर्द नहीं झेल पाऊंगा, वगैरह।
लेकिन इंग्लैंड के विशेषज्ञों की माने तो स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करने और इससे होने वाले मांसपेशियों के दर्द (Muscles Soreness) से उबरने में उम्र कोई मायने नहीं रखती।
उल्टा, नियमित रूप से वजन या पावर बैंड से की गई स्ट्रेंथ ट्रेनिंग शरीर में जमा चर्बी, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल कम करके हृदय रोग के जोखिम को घटाती है।
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इसके अतिरिक्त, स्ट्रेंथ या वेट ट्रेनिंग (Weight Training) उम्र से संबंधित दुष्प्रभावों जैसे ताकत में कमी, हड्डियों में कमजोरी और मांसपेशियों के सिकुड़ने को कम करने का एक प्रभावी तरीका भी है।
इस सच्चाई से पर्दा उठाने के लिए उन्होंने एक्सरसाइज करने की आयु, मांसपेशियों के दर्द और उससे उबरने संबंधित पिछले कुछ अध्ययनों का विश्लेषण किया।
विश्लेषण में स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के दर्द से उबरने में 18 से 25 वर्ष के नौजवानों की तुलना, 35 वर्ष और अधिक उम्र के पुरुषों संग की गई।
विशेषज्ञों ने पाया कि मुट्ठी भर अध्ययनों में ही अधिक उम्र वालों को स्ट्रेंथ एक्सरसाइज (Exercise) के बाद हुए दर्द से ठीक होने में समय लगा और युवाओं की तुलना में उनकी मांसपेशियों में दर्द के लक्षण ज्यादा दिखाई दिए।
हालांकि, अधिकांश मामलों में उम्र से मांसपेशियों के दर्द पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि कुछ में तो नौजवानों की अपेक्षा पुरुष जल्दी स्वस्थ हुए ।
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संयुक्त राज्य अमेरिका के जर्नल ऑफ एजिंग एंड फिजिकल एक्टिविटी में प्रकाशित शोध के निष्कर्ष, एक्सरसाइज और रिकवरी (Recovery) में कमी वाली भ्रांति का खंडन करते दिखे।
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि उनका अध्ययन बूढ़े लोगों को दर्द की चिंता किए बिना दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ के लिए कुछ वजन उठाने वाली गतिविधियों के लिए जरूर प्रोत्साहित करेगा।