Long COVID: लॉन्ग कोविड से मरीज़ों पर कैसा दुष्प्रभाव पड़ रहा है, यह बताया है एक नई स्टडी ने।
स्टडी ने लॉन्ग कोविड से उपजी थकान (Fatigue) और जीवन की गुणवत्ता को कुछ कैंसरों से भी बदतर पाया है।
बीएमजे ओपन में प्रकाशित स्टडी, लॉन्ग कोविड के 3,750 से अधिक रोगियों की जांच पर आधारित थी।
रोगियों ने एक क्लीनिक में समस्या का इलाज करवाने के दौरान एक डिजिटल ऐप का इस्तेमाल किया था।
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ऐप की मदद से प्राप्त डाटा के विश्लेषण में अधिकतर रोगियों ने ज़बरदस्त थकान की समस्या बताई थी।
स्टडी के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और एक्सीटर यूनिवर्सिटी विशेषज्ञों ने उनकी थकान व जीवन को कुछ कैंसरों से ज्यादा गंभीर पाया।
यह गंभीरता उनकी दैनिक गतिविधियों, थकान के स्तर, डिप्रेशन, चिंता, सांस फूलना, ब्रेन फॉग आदि दिक़्क़तों से मापी गई थी।
ट्रीटमेंट में ऐप का उपयोग करने वाले 90% से अधिक लॉन्ग कोविड रोगी 18 से 65 की कामकाजी उम्र के थे।
51% ने पिछले महीने में कम से कम एक दिन स्वयं को काम करने में असमर्थ बताया, जबकि 20% बिल्कुल भी काम नहीं कर पाए थे।
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71% रोगी महिलाएं थीं। लॉन्ग कोविड की कामकाजी महिलाओं में कार्य क्षमता गिरावट से काम का बोझ बढ़ना लाज़मी था।
गंभीर रूप से बीमार कई रोगियों की थकान का स्तर कैंसर संबंधित एनीमिया या गंभीर किडनी रोग वालों के समान था।
उनका स्वास्थ्य संबंधी जीवन भी स्टेज IV लंग कैंसर जैसे उन्नत मेटास्टेटिक कैंसर के मरीज़ों की तुलना में बदतर था।
लॉन्ग कोविड रोगियों की दैनिक गतिविधियां स्ट्रोक मरीज़ों की तुलना में अधिक खराब और पार्किंसंस रोगियों के समान थी।
कुल मिलाकर, परिणामों में लॉन्ग कोविड से रोगियों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ने की संभावना थी।
पीड़ितों को भला-चंगा करने के लिए उनकी थकान के आकलन और उपचार पर अधिक ध्यान देने की सलाह दी गई।