रेड मीट (Red Meat) खाने से दिल की बीमारियां (Cardiovascular diseases) क्यों होती है, इसकी जानकारी देने वाली एक स्टडी हाल ही में प्रकाशित हुई है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक जर्नल में छपी स्टडी के अनुसार, रेड मीट खाने के बाद इंसानी आंत में उत्पन्न होने वाले कुछ केमिकल्स हृदय रोग का ख़तरा तेज कर सकते है।
दरअसल, हमारी आंतों में कई तरह के बैक्टीरिया पनपते है जो भोजन पचाने के लिए विभिन्न केमिकल्स छोड़ते है।
इसी प्रक्रिया के तहत, बीफ और पोर्क को हजम करने के लिए पाचन तंत्र के बैक्टीरिया ऐसा केमिकल पैदा करते है, जिससे दिल की बीमारियां बढ़ने की संभावना जताई गई है।
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विशेषज्ञों की राय मानें तो ख़ून में टीएमएओ (Trimethylamine N-oxide) केमिकल का हाई लेवल हृदय रोग, क्रोनिक किडनी डिजीज और टाइप 2 डायबिटीज के उच्च जोखिम से जुड़ा हो सकता है।
बता दें कि टीएमएओ रेड मीट को पचाने में मदद करने वाला आंत बैक्टीरिया द्वारा निर्मित एक मेटाबोलाइट है।
स्टडी में, 65 और उससे अधिक उम्र के लगभग 4,000 नॉन-वेजीटेरियन के ख़ून में मौजूद कुछ मेटाबोलाइट्स को मापा गया था।
उनका आकलन औसतन साढ़े बारह साल और कुछ मामलों में 26 साल तक चलता रहा।
पता ये चला कि रेड और प्रोसेस्ड मीट अधिक मांस खाने से एथेरोस्क्लोरोटिक हृदय रोग का जोखिम बढ़ा हुआ था। एथेरोस्क्लेरोसिस में धमनियों के अंदर ‘प्लाक’ बनने लगता है।
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रेड मीट का प्रतिदिन सेवन करने वालों में इस रोग का जोखिम 22% अधिक था। यही नहीं, टीएमएओ और संबंधित मेटाबोलाइट्स में वृद्धि इस जोखिम के दसवें हिस्से के लिए जिम्मेदार थी।
यह भी पाया गया कि कोलेस्ट्रॉल या ब्लड प्रेशर की तुलना में ब्लड शुगर और सूजन रेड मीट से होने वाले हृदय संबंधी जोखिमों में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।
हालांकि, फलों, सब्जियां, फलियां, नट्स, साबुत अनाज, अंडे और मछली युक्त डाइट सहित एक्सरसाइज, पर्याप्त नींद, वजन कंट्रोल, धूम्रपान छोड़ने, ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल ठीक रखने से असमय मौत का ख़तरा टल भी सकता है।
दिल के दौरे, स्ट्रोक और अन्य कार्डियोवैस्कुलर डिजीज दुनिया भर में मौत का प्रमुख कारण है। देखा गया है कि जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, उनके दिल को भी खतरा बढ़ता जाता है।
स्टडी में रेड मीट और आंत माइक्रोबायोम द्वारा छोड़े गए विभिन्न केमिकल्स पर और अधिक ख़ोज करके इलाज के बेहतर तरीके जानने की उम्मीद है।
यह स्टडी अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की आर्टेरियोस्क्लेरोसिस, थ्रोम्बोसिस और वैस्कुलर बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
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