Effect of self-compassion on cardiovascular disease: जो महिलाएं स्वयं के प्रति दया भाव रखती है, उन्हें हृदय रोग के जोखिम का सामना कम करना पड़ता है।
ये कहना है एक हालिया रिसर्च का जो पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है।
नतीजों में उन्होंने हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और खराब इंसुलिन के बावजूद स्वयं के प्रति करुणा भाव (Self- compassion) रखने वाली मध्यम उम्र की महिलाओं में हृदय रोग विकसित होने का जोखिम कम पाया है।
खोजकर्ताओं का कहना है कि काम और निजी जीवन का तनाव हृदय स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, लेकिन सकारात्मक मूड और भावनाओं को अपनाने से दिल को राहत मिलती है।
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इसके लिए मेडिटेशन और आत्म-करुणा का अभ्यास करने से ह्रदय स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला चिड़चिड़ापन, चिंता और हल्के डिप्रेशन का असर कम होता जाता है।
इसे साबित करने के लिए शोधकर्ताओं ने 45 से 67 वर्ष की लगभग 200 महिलाओं का अध्ययन किया। उनसे कुछ सवाल और ह्रदय स्वास्थ्य जांचने के लिए उनकी कैरोटिड धमनियों का अल्ट्रासाउंड भी किया गया।
कैरोटिड धमनियां सिर, गर्दन और मस्तिष्क को ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करती है।
देखा गया कि जिन महिलाओं में स्वयं के प्रति करुणा भाव ज्यादा था, उनमें कम आत्म-करुणा वाली महिलाओं की तुलना में कैरोटिड धमनी की दीवारें पतली और हानिकारक प्लाक-निर्माण कम था।
इन संकेतकों को वर्षों बाद दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसे हृदय रोग के कम जोखिम से जोड़ा गया।
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ये नतीजे तब भी सही साबित हुए जब शोधकर्ताओं ने उनमें कार्डियोवैस्कुलर बीमारी करने वाले अन्य कारणों जैसे शारीरिक गतिविधि, धूम्रपान और अवसादग्रस्त लक्षणों की जांच की।
हेल्थ साइकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित नतीजों ने दया और करुणा का अभ्यास करने को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए आवश्यक बताया है।
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