डिप्रेशन (Depression) न केवल माता-पिता (Parents) बल्कि उनके बच्चों (Children) के लिए भी अभिशाप बन सकता है, ऐसा यूके में हुई एक स्टडी ने बताया है।
स्टडी के चौंकाने वाले नतीजों में विशेषज्ञों ने डिप्रेशन को छूत की बीमारी मानते हुए कहा है कि निराशाग्रस्त मां-बाप से बच्चों में भी इसके लक्षण आने संभव है।
इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, जो उनकी पढ़ाई-लिखाई को भी प्रभावित करता है।
स्वानसी यूनिवर्सिटी की इस स्टडी में बच्चों में डिप्रेशन लाने का दारोमदार माता और पिता दोनों पर डाला गया है।
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विशेषज्ञों के मुताबिक, माताओं के डिप्रेशन से बच्चों पर हुआ असर तो ज्ञात है, लेकिन पिताओं से भी उन्हें खतरा हो सकता है, ये कम ही जांचा गया है।
ऐसे में दोनों के डिप्रेशन से उनके बच्चों पर होने वाले असर को समय रहते जानना ही रोकथाम और प्रारंभिक इलाज के लिए जरूरी है।
नए अध्ययन में, डिप्रेशन झेल रहे माता-पिता और बच्चे, दोनों का विवरण डॉक्टरी रिकॉर्ड से प्राप्त किया गया था।
देखा गया कि यदि बच्चों के मां-बाप दोनों या किसी एक को उनके जन्म से पहले, उनके जन्म के बाद या उनके जन्म से पहले और बाद में भी डिप्रेशन था, तो बच्चों में इस समस्या के विकसित होने का डर अधिक था।
ऐसे बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धियों में अग्रणी रहने की संभावना काफी कम थी।
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अध्ययन में, बच्चों में डिप्रेशन के अन्य पहचाने गए कारणों में लड़की होना, उनकी मां का एंटीडिप्रेसेंट दवाएं लेना और घर में कोई स्थायी पुरुष सदस्य नहीं होना शामिल पाया गया।
पीएलओएस वन पत्रिका में छपी स्टडी का निष्कर्ष है कि माता के अलावा अब पिता के डिप्रेशन पर भी पहले की तुलना में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
विशेषज्ञ दल के मुताबिक, बच्चों के समग्र विकास और बेहतर शिक्षा के लिए परिवार में सदभावना और माता-पिता के डिप्रेशन का इलाज करना अत्यंत आवश्यक है।
लॉकडाउन और COVID-19 के बाद से तो ये ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान डिप्रेशन भी संक्रामक हो गया है।