कोरोना लॉकडाउन से गांव-देहात की महिलाओं के पौष्टिक आहार (Women nutrition) पर नकारात्मक असर पड़ा है।
लॉकडाउन के कारण उनके आहार में मांस, अंडे, सब्जियों और फलों जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य वस्तुओं की भारी कमी हुई, यह साल 2020 के कोरोनाकाल पर जारी एक रिपोर्ट से पता चला है।
ऐसी खाद्य सामग्री अच्छी सेहत और शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
रिपोर्ट में विशेषज्ञों का मानना है कि वैसे तो महामारी से पहले भी महिलाओं के आहार में विविध पोषक खाद्य पदार्थों की कमी थी, लेकिन COVID-19 ने स्थिति को बदतर कर दिया।
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महिलाओं के कुपोषण से जुड़े खुलासे के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा राज्यों में विभिन्न स्तरों पर खाने-पीने से जुड़ा खर्च, आहार विविधता और पोषण संबंधी अन्य पहलुओं के सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया।
उन्होंने तालाबंदी के दौरान ऐसे राज्यों में ग्रामीण निवासियों के भोजन खर्च में काफी गिरावट पाई।
लगभग 90 फीसदी उत्तरदाताओं ने कम भोजन मिलने की सूचना दी, जबकि 95 फीसदी ने विभिन्न किस्म के भोजन का सेवन नहीं किया।
सबसे बड़ी गिरावट सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर ताजे फलों और मेवों के साथ-साथ मांस, मछली और अंडे जैसे उत्पादों में आई।
सर्वेक्षण में महामारी के दौरान महिलाओं के पौष्टिक खाद्य पदार्थों की मात्रा और गुणवत्ता में भारी कमी पाई गई।
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कुछ महिलाओं ने लॉकडाउन के दौरान दाल की मात्रा आधी कर दी और पतली दाल ही खाई। यही नहीं, विटामिन ए से भरपूर फलों और सब्जियों का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या में 42 फीसदी की गिरावट पाई गई।
महिलाओं की आहार विविधता में गिरावट और खपत की मात्रा में कमी से होने वाला कुपोषण उनकी मां बनने की क्षमता और बच्चों के लिए भी खतरा बताया गया।
रिपोर्ट में इन्हीं विशेषज्ञों के एक पिछले अध्ययन का हवाला देते हुए बताया गया कि भारतीय महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में कम विविध आहार खाती है।
घरों के भीतर असमान भोजन आवंटन का एक कारण महिलाओं का अन्य सदस्यों के खाने के बाद भोजन करना शामिल है।
विशेषज्ञों ने कहा कि तालाबंदी के दौरान भारत में आंगनवाड़ी केंद्र बंद होने से भी महिलाओं पर असमान बोझ पड़ा।
नर्सिंग और गर्भवती माताओं को घर ले जाने का राशन और गर्म पका हुआ भोजन प्रदान करने वाले ये केंद्र महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
अध्ययन के अनुसार, महामारी के दौरान 72 फीसदी परिवारों को इन केंद्रों की सेवाएं नहीं मिली।
ऐसे में विशेषज्ञों ने केंद्र और राज्य सरकारों को महिलाओं के पोषण पर महामारी और अन्य विघटनकारी घटनाओं के प्रतिकूल प्रभाव जानने की जरूरत बताई है।
उन्होंने देश की खाद्य प्रणाली में विविधता लाने और महिलाओं तथा अन्य हाशिए पर रहने वाले समूहों को महामारी के दौरान और उसके बाद भी पौष्टिक आहार मिले, इसके लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया है।
इकोनोमिया पोलिटिका पत्रिका में प्रकाशित यह रिपोर्ट, टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन के विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई है।