बच्चों और किशोरों में हेडफोन (Headphones) और ईयरबड्स (Earbuds) के जरिए संगीत सुनने से बहरेपन Hearing Loss) की समस्या विकसित हो सकती है।
यह संभावना जताई है ध्वनि विज्ञान से जुड़े अमेरिकी विशेषज्ञों ने।
ऐसी संभावना के पीछे उनका तर्क था कि बढ़ते बच्चों और किशोरों का श्रवण स्वास्थ्य (Auditory Health) एक तय उम्र से पहले पूर्णतया विकसित नहीं हो पाता।
अमेरिका की ध्वनि विज्ञान से संबंधित एक संस्था की बैठक के दौरान विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत ऑडियो सिस्टम (Personal Audio System) के उपयोग और इससे संबंधित स्वास्थ्य शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
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उनका कहना था कि आजकल के बच्चे, किशोर और युवा प्रतिदिन कई घंटे तेज आवाज में संगीत सुनते है।
इससे उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, क्योंकि उनके द्वारा सुनें जाने वाले संगीत की मात्रा, दुनिया भर में निर्धारित प्रतिदिन 70 डेसिबल के शोर से ज्यादा होती है।
इसके दुष्प्रभाव से आज की युवा पीढ़ी अपने मध्य जीवन तक पहुंचने पर शोर-शराबे से होने वाले बहरेपन की शिकार हो सकती है।
अन्य ध्वनि प्रदूषकों की तुलना में ऑडियो सिस्टम से सुनने की क्षमता को ज्यादा खतराबताया गया।
यह खतरा पांच वर्षों में हर दिन एक घंटे से अधिक समय तक 50 फीसदी ज्यादा वॉल्यूम में संगीत सुनने पर बढ़ते देखा गया।
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विषेशज्ञों ने नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ द्वारा अनुमोदित 85 डेसिबल को बच्चों और किशोरों के लिए सुरक्षित मानने से इंकार किया।
उन्होंने कहा कि कारखाने या भारी उपकरणों को चलाने वाले श्रमिकों को भी इतना शोर बहरा होने से नहीं रोक सकता। ऐसे में छोटे बच्चों के कानों के लिए तो यह बहुत भयंकर है।
अमेरिका की नेशनल पब्लिक हेल्थ एजेंसी की मानें तो साल 2017 में लगभग 20 से 69 साल के 25 फीसदी अमेरिकी, शोर के चलते अपनी सुनने की क्षमता गवां चुके थे।
बहरापन सूचना के आदान-प्रदान की कठिनाइयों, सामाजिक अलगाव, गिरने और दुर्घटनाओं के बढ़ते जोखिम और बाद के जीवन में भूलने की प्रवृत्ति सहित कई स्वास्थ्य जटिलताओं से जुड़ा हुआ है।